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दोहा गीतिका
जिसने माँगा दे दिया,गुरु ने अपना ज्ञान।
शिष्यों का कर्तव्य है, दें उनको सम्मान।।
शिक्षक अपने शिष्य को,शिक्षा देते रोज।
शिक्षा से होता भला, बात यही लो जान।।
ज्ञानी को जग में सदा, मिलता है सत्कार।
ज्ञानी बनते ज्ञान से,इसका लो संज्ञान।।
शिष्य ज्ञान को सीख ले,होती ये गुरु चाह।
अर्जुन जैसे शिष्य से, बढ़ता गुरु का मान-
दो मिसरे इक क़ाफ़िया, एक रदीफ़ मिलाय।
दोहा कह 'अल्फ़ाज़' ने, दिया शे'र समझाय।।-
फूल डाल पर जब रहे, मन में बसे सुगंध
झर कर बिखरे राह में, टूटे जब अनुबंध-
कौन,कहाँ, क्या सोचता, इसको छोड़ो मित्र
स्वयं सोच रखना सही, इससे जुड़ा चरित्र
त्याग भले सबही मगर, त्याग न स्वाभिमान
इक इससे ही है जुडी, दृढ़, निष्ठा पहचान-
रूपमती दुखियाभई बिना बहादुर बाज।
सो अब जियरा तजति है, यहाँ नहीं कछु काज।।-
प्यार मोहब्बत मिट गया, चटुकारिता चहुँ ओर
बगुले करते राज अब, गया हंस का दौर.-
खरा प्रेम व कविताई, गहरी इनकी छाप |
जीवन का आधार भी, औ मृत्यु बाद का जाप ||-