उदास नज़्म कोई आज उदासी पे कहें
कोई तो बात अजी ज़ीस्त-शनासी पे कहें
हुई है ऊब तो फिर ऊँघ लिया जाए ज़रा
या यूँ करें कि कुछ अशआर उबासी पे कहें-
मुसन्निफ़ हूँ मगर किरदार होता जा रहा हूँ
तसल्लुत अपने ही लिक्खे पे खोता जा रहा हूँ
कहानी में तो इक अंजाम अच्छा ही लिखा था
उसी अंजाम पर पैहम मैं रोता जा रहा हूँ-
यार सारे, सारे आशिक़ और पुराने मुँह लगे
अब ये कहते फिर रहे हैं कौन उसके मुँह लगे-
ये जो इश्क़–ओ–उल्फ़त वाली भोली-भाली बातें हैं
सुन तुझको इक बात बताऊँ सारी ख़ाली बातें हैं
हाँ इक ऐसा दौर था जिसमें बातें ख़त्म न होती थीं
अब बातें होने की बातें सिर्फ़ ख़याली बातें हैं-
वो बढ़ते फ़ासले पैहम हमारी जान ले बैठे
मुसलसल इश्क़ के मातम हमारी जान ले बैठे
उधर थीं बारिशें शायद इनायत और उल्फ़त की
यहाँ तो हिज्र के मौसम हमारी जान ले बैठे
किसी टूटे हुए दिल को कहो कैसे करार आये
कहीं ऐसा न हो मरहम हमारी जान ले बैठे
बस उनकी उँगलियों पर हमने अपनी ज़िन्दगी रख दी
हुआ बस इक इशारा हम हमारी जान ले बैठे
शजर सारे ख़फ़ा थे जब चिता में ख़ाक होने थे
कि अपने संग ये आदम हमारी जान ले बैठे
हमीं उल्फ़त के इस दंगल में उतरे जो बिना सोचे
करेंगे क्या अगर रुस्तम हमारी जान ले बैठे
बदल देते हैं सब 'अल्फ़ाज़' सारे सुर ग़ज़ल के हम
कि इससे पहले ये सरगम हमारी जान ले बैठे-
काफ़ी थे बस ढाई आखर हर गुत्थी सुलझाने को
पर अपने हिस्से में आये, दो ही अक्षर तेरे 'ग़म'-
इतनी मुश्किल दुनियादारी, और फिर उस पर तेरे ग़म
सारी दुनिया छोड़ के आए, मेरे ही सर तेरे ग़म
वो तो हमने गिर्या करके बहला रक्खा है उनको
वरना कब के ही चल देते आपा खोकर तेरे ग़म
बंद रखे दरवाज़े दिल के और ज़ेहन पे ताले थे
जाने फिर कैसे घुस आए मेरे अंदर तेरे ग़म
एक तरफ़ ख़ुश्की है कितनी, एक तरफ़ कितनी फिसलन
तेरी बातें अब्र-ए-बाराँ, बंजर बंजर तेरे ग़म
लिख कर कुछ 'अल्फ़ाज़' तुझी पर हम कातिब हो जाते पर
उन सफ़हों के संग जलाये हमने लिखकर तेरे ग़म-
ख़ालीपन में काम हमारा, फ़िक्र तुम्हारी ज़िक्र तुम्हारा
गुज़रा वक़्त इसी में सारा, फ़िक्र तुम्हारी ज़िक्र तुम्हारा
ग़ालिब ने क्या ख़ूब कहा था, इश्क़ निकम्मा कर डालेगा
इस धंधे में सिर्फ़ ख़सारा, फ़िक्र तुम्हारी ज़िक्र तुम्हारा-
ग़ज़ल को कुछ नए चेहरे नए अशआ'र देता हूँ
मैं यूँ 'अल्फ़ाज़' के ख़ंजर को अपने धार देता हूँ
कभी जब तैश में चाहूँ किसी का क़त्ल करना मैं
तो फिर ग़ुस्से में आकर शे'र कोई मार देता हूँ-
इतनी मुश्किल दुनियादारी, और फिर उस पर तेरे ग़म
सारी दुनिया छोड़ के आए, मेरे ही सर तेरे ग़म-