NS UTKARSH   (नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” ©)
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Joined 10 August 2017


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8 JAN 2022 AT 10:33

कामातुर कामनी की कामना को कामवश,
कामदी करे कामद, कामदेव जानिये

व्याकुल विरह बीच विरही की विरहदशा,
वेदना में वेदना की, पराकाष्ठा मानिये

साधना सफल साँच, साधित सा सेवाभाव,
सारे सुख त्याग, सुख, परहित ठानिये

कहे है नवीन,कवि, नम्र हो, अनभूति करे,
भूत - वर्तमान जोड़, भविष्य निकालिये

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20 APR 2021 AT 20:57

गगन मैं और तुम धरती, नदी तुम तो किनारा मैं
अगर मैं पुष्प तुम खुशबू, तुम्ही ने तो सँवारा मैं
लिखूँ क्या कौन हो तुम और मैं हूँ कौन आखिर ये
रही तुम प्रीत इस जग की,लगा तबही तो प्यारा मैं

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13 JAN 2019 AT 9:05

अथाह अंबुधि मोह का, इधर तीर संसार
नौका सम हरि नाम है, उधर तीर भव पार
जपे तो भव को जाये
नहीं तो वो पछताये

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28 DEC 2018 AT 9:51

साधु,स्वादु,में भेद पर,दीखत दोउ समान ।
एक राम में है रमा,दूजे की रस जान ।
साधु ने सब कुछ त्यागा ।
स्वादु है मित्र अभागा ।।

पाला, गर्मी, वृष्टि, में,करता श्रम घनघोर ।
कब सोता कब जागता,कब संध्या कब भोर ।।
फसल पर निर्भर जीवन ।
खेत उसके घर आँगन ।।

एक वस्तु का काव्य में,वर्णन जहाँ अनेक ।
शोभा करता दोगुनी,उत भूषण उल्लेख ।।
तरीका यह अपनाओ ।
काव्य को सभी सजाओ ।।

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12 DEC 2018 AT 0:35

गृहस्थ सार
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घर बाहर का मुखिया नर हो
और नारि घर भीतर जान
दोनों ही घर के संचालक
दोनों का ऊँचा है स्थान
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बात करे जब मुखिया पहला
दूजा सुने चित्त ले चाव
बात उचित अनुचित है जैसी
वैसा ही वह देय सुझाव
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बिना राय करना मत दोनों
चाहे कैसा भी हो काम
दोनों ही पहिये हैं घर के
एक दाहिना दूजा वाम

एक समझ से भली रही दो
दोनों का पद एक समान
दोनों ही आधार गृहस्थ के
रखो परस्पर दोनों मान

अगर बात मतभेद लिये हो
तो धर लेना इतना ध्यान
जिसका जो अधिकार क्षेत्र है
उसके ही कर रहे कमान
To be Continue....
All Rights Reserved.

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12 JAN 2022 AT 21:45

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5 JAN 2022 AT 20:44

जिन नैनन हैं देखते, तिन कूँ तैसो रूप
गर्म नर्म औ सर्द सी, तीन ऋतुन की धूप

दया,धर्म,धीरज, क्षमा,दृढ़ता, सद् व्यवहार
छः आभूषण वीर का, करते हैं शृंगार

मर्यादित व्यवहार ही, मनुष्यत्व पहचान
सब जीवों में श्रेष्ठ तब, रहा मनुज लो जान

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2 JAN 2022 AT 13:20


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19 DEC 2021 AT 22:47


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19 DEC 2021 AT 22:42


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