मोहब्ब्त तो उनकी सच्ची थी
जिनके खून की खुशबू से आज भी
हमारे देश की मिट्टी महकती है-
कितनी नादान है मेरे देश और गाँव की मिट्टी भी
सच है ये मिट्टी एक समान है सबके लिए, और
मैं यहाँ खेती कर के अन्न उपजता हूँ
हाँ मैंने अपनी फ़िकर नहीं किया कभी
भले चाहे भरी बरसात में हो या कड़ी धूप में
या कपकपाती जाड़े का मौसम ही क्यूँ न हो।
"अन्न उपजा कर खुद के संग संग सभी का पेट भरता हूँ मैं"
और फ़िर भी ये शहर के बड़े लोग
मुझ ग़रीब किसान को हीन भाव से देखते हैं
कभी देसी तो कभी गाँव वाला कह कर संबोधित करते हैं
सचमें बड़ा ही तुच्छ हूँ मैं इन बड़े लोगों के बीच में
पर ख़ुश हूँ, की ये बड़े लोग न सही मेरी मिट्टी ने मुझे दिल से अपनाया है।।
जय श्री राम 🙏-
हो समर्पित वतन पे ललन चाहिए ,
भगत , आजाद जैसे रतन चाहिए ।
मृत्यु के बाद यदि जन्म फिर से मिले ,
तो भारत ही मुझको वतन चाहिए ।-
स्वयं तक सीमित रहने का सुख था
कि प्रेमी के झूठ ही झूठ लगते थे,
देखी जब देश दुनिया की हालत
तुम्हें माफ करने का जी करने लगा,
छिप-छिप के जिसने आँसू बहाये
वो बला भी आज चीख पड़ती है,
उसको दर्द कुछ जल्दी होता है
दो बच्चों से एक सा प्यार जो करती है,
देश में तो दंगे होते है
औरत घर में ही खुश रहती है ।-
Bewajah hi nahi wo apni jaan hai chidhkte Watan se mohabbat hai unhe or desh ko maa se kam nahi samjhte
🇮🇳♥️-
ना ही वो हिन्दू लिखेगा ,ना मुसलमान लिखेगा।
हमेशा एकता का गीत हर जवान लिखेगा।
धर्म,भाषा,मज़हब और मुल्क में तो हमने बांटा है
बहेगा खून सरहद पे तो हिन्दोस्तान लिखेगा।
✍️राधा_राठौर♂-
ढलते सूरज-सा ढलता हूँ।
मैं ठोंकर-ठोंकर चलता हूँ।
मेरे गाँव भुलाए थे मैंने
ये शहर बनाए थे मैंने
पर आज इन्हीं शहरों से मैं
बेहाल बहुत निकलता हूँ।
मैं ठोंकर -ठोंकर चलता हूँ।।
मेरी बात करोगे एक - आधी
तुम शेर लिखोगे दो - चारी
तुम जानो क्या किस हाल में हूँ
किस आग में पग-पग जलता हूँ।
मैं ठोंकर -ठोंकर चलता हूँ।।-
दौलत की चमक ये तेरी बीनाई न लूटे
गुज़रे जो मुद्दई कोई तो दरगुज़र न हो।-
देश की सबसे बड़ी समस्या ये हैं की
यहां देश की समस्या को लोग
देश की समस्या समझते हैं, अपनी नहीं।-