जलाने की बड़ी ख़्वाहिश है
गरीब के पास न तेल न दीया
न ही कमबख़्त माचिश है-
जलाया जो 'दिया' तुमने मेरे दिल में
तमाम उम्र जलाये रखूँगा,
तन्हाई के मजलिसों में भी
मोहब्बत की रौशनी बनाये रखूँगा..-
आरिफ़ लड़ लड़ जग मरा, कोउ कछु नाहिं किया
दोऊ हाथ ओट लगै, कबहुँ बुझे न दीया-
हर पल मैं जलता गया तुझे रोशनी देकर,
तेरा नूर जो छाया है,मेरे कालिख से ही तो ..-
तुम न आए, हमें ही बुलाना पड़ा
मंदिरों में सुबह-शाम जाना पड़ा
लाख बातें कहीं मूर्तियाँ चुप रहीं
बस तुम्हारे लिए सर झुकाता रहा
प्यार लेकिन वहाँ एकतरफ़ा रहा, लौट आती रही प्रार्थना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना
शाम को तुम सितारे सजाते चले
रात को मुँह सुबह का दिखाते चले
पर दीया प्यार का, काँपता रह गया
तुम बुझाते चले, हम जलाते चले
दुख यही है हमें तुम रहे सामने, पर न होता रहा सामना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना-
रोशन करे रब्ब सबकी दिवाली
किसी की भी झोली रहे ना खाली
दीयां जले सबकी खुशियों का
घर में आयें इतनी खुशहाली-
ऊँचे लोगों से याराना रखों , पर किसी छोटे का साथ न छोड़ो
सूरज की किरणें जहाँ साथ छोड़ दे ,वहां दीया सहारा बनता है-
खुशियों से जब सारा घर भर जाये
तो दिवाली आयी है,
रौशनी ही रौशनी हो, अंधेरा सब मिट जाये
तो दिवाली आयी है!!-