आदि से अनंत तक का भाव है तू,
मैं उमा की तपस्या तो महादेव का त्याग है तू,
यह विषम काल भी व्यतीत हो जाएगा क्षण भर में,
अत्यधिक तो कुछ भी नहीं बस,
मेरे लिए जीवन का सार है तू !
©अदिति त्रिपाठी "आज़ाद"🇮🇳-
🌻जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी🌻
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बेज़ार जिंदगी का नुमाईंदा हूँ मैं
उसके लिए शिकायतों का पुलिंदा हूँ मैं,
बेअदबी का ताज जबीं पर लिए
टूटी हुई रूह के साथ जिंदा हूँ मैं,
किसी के साथ का इश्तियाक नहीं मुझे,
बेफ़िक्र गुलुखलास परिंदा हूँ मैं ।
©Aditi Tripathi'आज़ाद'🇮🇳
*जबीं -forehead
*इश्तियाक - craving/wish
*गुलुखलास - free/independent-
खुद को हर बार भुला दूं,
ऐसी मुहब्बत हम आजकल करते नहीं..
इश्क़ बेहिसाब है उससे लेकिन,
इबादत हम किसी की करते नहीं..
उसकी हर चाहत का ख़याल है,
लेकिन खुद की तासीर हम
किसी के लिए बदलते नहीं..
यूं तो मिलने की ख़्वाहिश है दबी कहीं,
मगर हम पलके बिछाकर इंतज़ार
किसी का करते नहीं..
मुहब्बत अगर दिल से हो तो
लुटा दूं अपनी जान उसपे,
सोच समझकर की हुई दिल्लगी को
हम मुहब्बत कहते नहीं..
©Aditi Tripathi'आज़ाद'🇮🇳-
उसका मुझे सीने से लगाना अथाह सुकून दे जाता है..
जैसे नदी मीलों चलती है,
सागर की खोज में खुद को भुलाने के लिए,
उसे पता है कि मिट जाएगा अस्तित्व उसका,
लेकिन जानती है वो मिलना उसकी नियति है
क्योंकि पूर्णता को प्राप्त करने से अधिक कुछ नहीं,..
तुझमें खोकर कुछ इसी तरह पूर्ण करती हूं मैं खुद को..
और अपने अस्तित्व का हिस्सा देकर तुझे भी..
©Aditi Tripathi'आज़ाद'🇮🇳-
नादां है वो लोग जो इश्क़ और इबादत को जुदा मानते हैं..
तुम पूजो अपने 'अल्लाह' और 'राम' को,
हम तो अपने महबूब को अपना खुदा मानते हैं..-
प्यार है अगर तो बताना भी पड़ता हैं,
परवाह है अगर तो जताना भी पड़ता है,
यूं तो बिन कहे सब समझने की चाहत बेमानी सी हो गयी है,
दर्द हो तो अश्क़ दिखाना भी पड़ता है,
हीर-रांझा ,लैला मजनूं किताबों में बंद पड़े हैं,
सीता तक पहुँचने को राम-सेतु बनाना भी पड़ता है,
चुप रहकर इंतेज़ार करना कहाँ तक सही है,
सती वियोग में शिव को तांडव दिखाना भी पड़ता है,
कितना भी प्यार, तू कर ले मुझसे,
बेइंतेहा विश्वास, मैं कर लूं तुझपे,
मगर सजदे में तो सिर झुकाना ही पड़ता है,
साथ रहने के लिए-चाहत,विश्वास,ईमानदारी के साथ ही 'सात फेरों' का रस्म
निभाना 'ही' पड़ता है!!-
मुस्कुरा कर हर ग़म को पीते चले गए,
छोड़ा अपनों ने साथ फ़िर भी जीते चले गए,
उधेड़ने की साज़िश यूं तो बहुतों ने की मगर..
हम भी समेटने की ज़िद में खुद को 'सीते' चले गए ....-
जो 'शक्ति' रहित है वो 'अ-शिव' है एवं
जो 'शिव' रहित है वो 'शक्ति-हीन'-
हाँ मैं मजबूर हूँ,
सशक्त भारत का मैं अशक्त मजदूर हूँ,
पैरों में छाले लिए दर दर भटकता,मैं भारत का गुरुर हूँ,
हाँ मैं मजदूर हूँ..
1)बेतहाशा गर्मी में मीलों पैदल चलता,
खेतों में कोल्हू की तरह जुतता फिर भी दो रोटी को तरसता,
जिन हाथों से तेरा घर बनाया आज उन्हीं हाथों से अपने बच्चों का गला घोंटने पर मजबूर हूँ
हाँ मैं मजदूर हूँ..
2)टूट गया शहर से रोटी का रिश्ता,शैतानी रूह थी उसकी जिसको समझा फ़रिश्ता,
बड़े शान से बैठे हैं सिंहासन पर जो आज उन्हीं के पैरों तले रौंदे जाने को मजबूर हूँ
हाँ मैं मजदूर हूँ..
3)सुई से जहाज़ तक मैं ही बनाता,पोशाक से जूते तक तुझे मैं ही सजाता,
हर सुविधा तुझ तक पहुँचाता फिर भी अपने घर की अस्मत नहीं बचा पाता
•आज प्रश्न है मेरा जवाब दे मुझे,मेरे ख़ून की हर कमाई का हिसाब दे मुझे
तपती धूप में पैदल क्यूँ हम ही चलते?
पत्नी और बच्चों संग क्यों हम ही जलते?
एक एक दाने को क्यों हम ही तरसते?
हर दूसरे दिन कीड़े मकोड़े की मौत क्यों हम ही मरते?
क्यूँ हमारे लिए कोई व्यवस्था नहीं,वोट बैंक नहीं हमसे तभी कोई पूछता नहीं
कभी रेल तो कभी ट्रैक्टर से कटता
मीलों चलते हुए बिन पानी के मरता
समृद्ध भारत है हमसे यह नींव हमने है डाली
ये वही कुसुम है जिसके हम ही तो है माली
स्वर्णिम भारत का स्वप्न कभी भी पूरा ना हो पायेगा
जबतक भारत का 'मजदूर' यूँही 'मजबूर' बनकर रह जायेगा!!
© Aditi Tripathi'आज़ाद'🇮🇳-
ना जाने क्यूँ मुझसे है नाराज़ ज़िंदगी,
खफ़ा-खफ़ा सी क्यों है ये आज ज़िंदगी ?!
1)बहुत प्यार से मैंने सजाया था इसे,
उम्र देकर अपनी संवारा था इसे,
फिर क्यूँ मुझपे ही उगल रही है आग ज़िंदगी?!
ना जाने क्यूँ......
2)जिसे समझ हमसफ़र ,सफर पर निकल पड़ी थी मैं,
खुद को मान नदी बेफिकर बह चली थी मैं,
अब उसकी बेतुकी बातों से हो गई है बेज़ार ज़िंदगी !!
ना जाने क्यूँ....
3)बहुत कोशिश की मगर इतना ही समझ पायी हूँ,
तेरे किस्से सुलझाते अक्सर,खुद को ही उलझा पायी हूँ,
कुछ पल की बात नहीं 'आज़ाद', अंतिम सांस तक लेती है इम्तिहान ज़िन्दगी!!
ना जाने क्यूँ....मुझसे है नाराज़ ज़िंदगी ?!
खफ़ा-खफ़ा सी क्यूँ है ये..आज ज़िंदगी ?!
© Aditi Tripathi'आज़ाद'🇮🇳-