"इंद्रप्रस्थ" था नाम पुराना अब "दिल्ली" इसको कहते हैं।
यमुना के किनारे बसा है ये, हम देश के दिल में रहते हैं।
लाल किला, इंडिया गेट में बसती लोगों की जान जहाँ।
कनॉट प्लेस और चाँदनी चौक के बाजार बड़े मशहूर यहाँ।
राजनीति का केंद्र है ये, धरने भी होते यहाँ बेशुमार ।
हर राज्य के वासी रहते हैं, मनाते हैं सभी तीज-त्यौहार।
दिल्ली न पूछे जाति-धर्म, सबको दिल से अपनाती है।
बस इसीलिए अपनी दिल्ली दिलवालों की कहलाती है।-
'गाँव का साहित्य'
चले जैहौ बज़रिया ओ राजा जी
दिल्ली शहर की लागी बज़रिया
मोहे ला दे चुनरिया ओ राजा जी
पहिर ओढ़ मैं अँगना में ठाढ़ी
मोहे लागी नज़रिया ओ राजा जी
दिल्ली शहर के वैद्य बुलाओ
मोरी झाड़े नज़रिया ओ राजा जी
दिल्ली शहर के वैद्य मिज़ाजी
माँगे पाँच रुपैया ओ राजा जी-
धूप में
कुछ तन्हा..पेड़ों को देखा..
🍁
जल रहे थे..वफ़ा निभाने वालों के जैसे..
कल रात भर सफर रहा दिल्ली का ,😊-
सबसे बदकिस्मत होती हैं
वो सड़कें जो सुनती हैं,
किसी औरत, किसी लड़की, किसी बच्ची
की ओर बढ़ती
अंधेरेे के किसी कोने की अश्लील आवाज़ें।
वो आवाज़ें जिनकी कोई शक्ल नहीं है,
बस एक एहसास है,
एक घिनौना एहसास।
जो देख लेती हैं आदमियों का बे - आबरू होना।
जो इतना कुछ सुनने और देखने पर भी
टूट कर बिखर नहीं जाती।
जो करती हैं बस वही जो वो कर सकती हैं।
ये सड़कें शहर बना लेती हैं
समाज नहीं बना पाती।
- सुप्रिया मिश्रा-
साली तो रस की प्याली है,
साली क्या है रसगुल्ला है
साली तो मधुर मलाई-सी,
अथवा रबड़ी का कुल्ला है।
पत्नी तो सख्त छुहारा है
हरदम सिकुड़ी ही रहती है
साली है फाँक संतरे की,
जो कुछ है खुल्लमखुल्ला है।-
ये दिल्ली है दिलवालों की
ये दिल्ली है मतवालों की
देश का दिल कहें या राजधानी
ये दिल्ली है बड़े-बड़े कारखानों की
इन्डिया गेट भी है यहाँ
जो श़ान है वीर जवानों की
कुतुबमीनार और लाल किला
इज्ज़त करते मेहमानों की
ये दिल्ली है दिलवालों की
ये दिल्ली है मेहमानों की।-
बूशट पहिने
खाई के बीड़ा पान
पूरे रायपुर से अलग है
सैयां जी की शान
ससुराल गेंदा फूल-
वो मणिकर्णिका मर के ज़िंदा है
ये मणिकर्णिका ज़िंदा होके भी हर रोज़ मरती है।।
कि राजा हो या रंक, साधु हो या संत सब साथ साथ जलते है.....
तुम जो ये दिल्ली में हिन्दू मुसलमान करते हो ना
आना कभी बनारस में दिखाते है तुमको
हमारे यहां हिन्दू भी कलमा घाटों पर पढ़ते हैं।।-