दफ़्न होने दे मेरे रूह को सन्नाटे की कब्र में, की मेरा जिस्म मेरे शोर को बाहर निकलने नही देता, कैद होने दे अब मेरी ताकत को खुदा के दरबार में, की अब मेरा मन और लड़ने की गवाही नही देता!
माँ तेरे दर पे आया हूँ खाली हाथ मैं आया हूँ शीश झुका तेरे चरणों में तेरी शरण में आया हूँ हे अम्बे!हे गौरी माता तू शक्ति संसार की माता सदा हाथ अपना तू रखना साथ हमेशा बनाये रखना शत शत नमन मैं करता हूँ तेरे दर्शन का प्यासा हूँ नाम तेरा ले लेकर मैं माँ तुझे बुलाता हूँ।
"अब खुश देखता हूँ पिताजी को सपनों में उनकी चाहतों को परवान जो चढ़ा रहा हूँ अब बेशक़ सुकून से होंगे रब के दरबार में उनकी मन्नतों का अब मान जो बढ़ा रहा हूँ"