दरकिनार कर दिये रिश्तें सारे,
देखते हैं उन्हें कमी महसूस होती हैं,
या हमें आदत हो जाती हैं!-
महफ़िल और उस की आँखों में जब तक रहा मैं भार रहा
नहीं था मैं ना-समझ समझता था तभी तो दरकिनार रहा-
मान ली वाइज़ों की बात
दरकिनार कर ली इश्क़ से भी
पर राहते नींद जो आई रात भर
तंग हूँ इस मुसलसल सुकून से भी-
मेरे शिद्दती इश्क़ को उसने दरकिनार कर दिया
उसके दर के किनारे अब कोई और खड़ा था-
वो दरकिनार कर रहे, मुझको खुद से ।
हम पूछ बैठे उनसे तो, नजरें झुका लिये हम से ।।-
, उन ही में मिली यूँ
फूलों जैसे मुरझा गए जो रिश्ते
....निहारकर है उनको क्या खिलना !!
शिकायत शिकायत, बनाई कमी कि सिर्फ़ क्यूँ
दरकिनार हमारी यादों को मेरे पास
.....शुक्रगुज़ार है उनका छोड़ जाना !!
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इकरार भी नहीं करती है,
इज़हार भी नहीं करती है,
वो मुझसे प्यार भी करती है,
रूह से जुड़ी है,अपनी नजर में है वो,
और सबसे दरकिनार भी रहती है...!-
ख़ामी व ख़ूबी को दरकिनार रख
ख़ुदा के लिए बस मेरा इश्क़ देख
ख़लिश दिल में जो है बता के तो देख
शिकवे शिक़ायत मिटा के तो देख
ख़्वाहिश मेरी बस तुझे चाहते रहना
ख़्वाबों में मेरे तू आकर तो देख
ख़ामोशी तेरी मुझे जानलेवा लगे
ख़ुश्क लबों को खोल के तो देख
मन के ग़ुबार उड़ेल के तो देख
किस बात पर आख़िर खफ़ा है
ग़र है मुहब्बत तो गलतियाँ न देख-
समस्याओं से ख़ुद को, दरकिनार न कर,
यक्ष प्रश्न हैं कई,जवाब से इनकार न कर।
इंसान है वो तो, शर्म से भी मर जाएगा,
सबक सिखाने,हथियारों में तू धार न कर।
खरी है शिकायत, तो मुंह पर बोल,
पीठ पर खंजर से, किसी के वार न कर।
कुछ तो होगा निजी, उसे सम्भाल के रख,
ज़िन्दगी के हर पन्ने को, अख़बार न कर।
मुंह में राम बगल में छुरी, भी हैं यहां पर,
मीठी ज़बान पर ज्यादा ऐतबार न कर।-
दरकिनार कर दो
उन लोगों को अपनी
जिंदगी से साहब
जो आपकी भावनाओं को
ताक पर रखते हैं-