कुछ चाँदनी में नहाई रातें मिलें कहीं तो,
ज़रा मेरी आँखों का पता देते जाना उन्हें,
कई रोज़ बीत गए कागज़ पर तारे उकेरे हुए।
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है अपना देह बंदर और ये दिल क़लंदर,,
मत्थे दूसरे मढ़ूँ न थकूंँ मैं इल्ज़ाम समंदर ।।
फ़र्क ए ख़ुदाई न निभाता बन जाता पैग़म्बर!!-
तारीफ : ek triveni
उनकी तारीफ में दो शब्द लिखने को कहा था मेरे मालिक ने
मैं नहीं लिख सका, दो शब्द कम पड़ गए उनकी तारीफ के लिए
दो शब्द में तो उनकी तारीफ होती है जो वाकई में अच्छे होते हैं।-
बिछड़ कर तेरी याद में हम आंसू बहा लेते है,
पर तेरे अश्क़ भी मेरे नसीब में नही!
दीवार पे टंगी तस्वीरे जवाब नही देती।-
जपा है जब से अल्लाह-राम
शेष विशेष नहीं कुछ द्वेष
शेष विशेष नहीं अब काम।
हज़रत - मरियम - सीताराम
परहित करना इक संदेश
निर्धन कुटिया मक्का-धाम।
ईश्वर - अल्लाह इक का नाम
मंदिर - मस्जिद कहाँ कलेश
सब उसकी है धरा तमाम।
नानक, ईसा, राधा - श्याम
कब था इनको क्रोधावेश
गंगा करूणामय अविराम।-
हदों में बंधना कहाँ थी फ़ितरत मेरी
गर्मी-ए-एहसास से सराबोर नज़र तेरी
तू आफ़ताब तो मैं बे-लगाम दरिया हो गया-
अल्फ़ाज़ों की जरूरत नही पड़ती अहसास बताने को,
छुपाने की जरूरत नही पड़ती हमेशा आँसुओं को!
एक फ़ौजी खत की सलवटों से अपनी यादें पाता है!-
अमृत भूमि प्रयागराज जन चेतन आध्यात्मिक का संगम,
छलका अमृत, हुआ देवत्व, हुआ तब यह दुर्लभ संगम।
देश विदेश में हुआ चर्चित, खींचे चले आए जैसे चुंबक
उमड़ पड़ा अथाह जन सैलाब मनभावन दृश्य विहंगम।
रज पद स्पंदन सनातन गौरव स्वर्ग सम त्रिवेणी परिवेश,
आस्था की डुबकी, तन मन प्रफुल्लित, आत्मिक जंगम।
पुण्य सलिला तीर पर, यज्ञ अनुष्ठान की प्रज्वलित लौ,
जैसे देव स्वर्ग से अनुभूदित हर क्षण आशीर्वाद हृदयंगम।
वैचारिक नैतिक सात्विक से ओतप्रोत सर्वस्व सर्वत्र ओर,
जो बने हिस्सा भाग्यशाली, आधि व्याधि तज हुए सुहंगम।
हर एक के जीवन में होता यह प्रथम और अंतिम अवसर,
जीवन सुफल, दुःख दर्द निष्फल, जैसे यह मोक्ष आरंगम।
आत्मशुद्धि, वैचारिक मन मंथन का सुव्यस्थित आश्रय,
नश्वर तन का अटल अंतिम सत्य, यही संगम यही मोक्षम
सदियों से बना यह अति उत्तम दुर्लभ खगोलीय संयोग,
बहुचर्चित, दिव्य, अलौकिक इस महाकुंभ का शुभारंभ।
_राज सोनी-
चारों तरफ सिसकियों का पलटवार है
हर दरवाज़े पर अँधेरा टिककर खड़ा है
पानी बिका है आज मोहल्ले में तवायफ़ की तरह..-