तू शब्दात गुंततो
कवितेत उतरवतो
मनात दडून ठेवतो
कधी सर्वाना सांगतो
एकदा कधी सांगशील काय रे ..!!
त्या लिहिलेल्या प्रत्येक शब्दात
तू कुणाला रेखाटतो ??
कधी तरी मला माझ्या
समोरच म्हणशील काय ??
मी तुझा ..!-
नहीं पता अगले जनम का, इस जनम तो जी लें,
तुम्हें तो पा के भी खोया है मैंने, और उस ने खो के भी पा लिया....
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तूच माझी आस
हृदयात तूच माझ्या पास
वेडी स्पंदनेही तुझीच खास
बावरी होऊनि,छळती तुझेच भास !-
मुझे फिर से मुहब्बत हो जाती है....
जब सुबह घर से निकलते, वो कहती है जल्दी आने को,
दोपहर में याद दिलाती है खाना खा लेने को,
याद करती है मुझे शाम की चाय पर,
कसम से,
मुझे फिर से मोहब्बत हो जाती है ...
घर से निकलता नहीं, उस से पहले पूछ लेती है 'कब लौटोगे',
बाहर कहीं रहूँ तो रखती है उम्मीद जल्दी लौटने की,
दोस्तों में बैठा रहूँ तो याद दिला देती है एक मिस कॉल दे के,
कसम से,
मुझे फिर से मुहब्बत हो जाती है ...
गहरी नींद में रहूँ तो उठाती नहीं,
उठो तो कुछ देर और सो लेने को कहती है,
जब उठता हूँ, भाप से भरी गर्म कॉफी का प्याला ले आती है,
कसम से,
मुझे फिर से मुहब्बत हो जाती है ...
वो आसपास ना हो तो भी पास ही महसूस होती है,
किसी के हमेशा ध्यान रखने का एहसास होती है,
बिना बोले अपनी आँखों से जब बहुत कुछ कह जाती है,
कसम से,
मुझे फिर से मुहब्बत हो जाती है .....-
सगळ्यात चांगली मैत्रीण किंवा मित्र शोधत असाल ना,
तर फक्त आरसा बघा, मिळून जाणार तुम्हाला तुमचा सोबती..
24×7 सोबत असणारा सोबती..
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"स्त्री"
तूच शक्ति,
तूच स्फूर्ती,
प्राणीमात्रांना आश्रय
देणारी तू धरणी;
अण अस्ताला नेणारी
तूच अग्नी.....।
भीमाचा आधार तू ती रमाई,
अण हातात लेखणी
देणारी तूच ती सावित्री ..।
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मेरे सब दिल के रंग तेरे हैं, तुझ से ही है,
तू न हो तो जिंदगी में कोई रंग न बाकि रहे ...
एक रंग सर्दियों की धूप सा तो दूसरा गर्मियों के बाद बारिश सा,
कोई सर्दीयों की भाप उगलती चाय सा तो कोई गर्मियों के पलाश सा,
एक फागुन की होली की ख़ुशबू सा तो दूसरा दीवाली के दीयों की उजास सा,
कोई रंग ईद की नमाज का तो कुछ दूर से आती गिरजे की घंटियों की क्रिसमस की केरोल सा,
कुछ नर्म नाजुक रिश्तों सा तो कुछ जिंदगी की सच्चाइयों सा,
नरम से तकियों सा और गर्म से लिहाफ सा,
मेरे दिल के सब रंग तुझ से ही हैं,
महकते हुए, ख़ुशबू बिखेरते हुए, रोशनी भरते हुए,
तू नहीं है तो कोई रंग बाकी नही .....-
कसं सांगू कि तू माझ्या साठी कोण आहेस
सागरात तू,दारीयेत तू
आकाशात तू धरतीत तू
वसंत तू बहार भी तू
दिवस भी तू रात्र भी तू
झोपेत भी तू स्वप्नात भी तू
डोळ्यात भी तू हृदयात भी तू
मनात भी तू स्वासात भी तू
गोष्टीत भी तू विचारात भी तू
जीवन भी तू मरण भी तू
सुरवात भी तू आंत भी तू
कसं सांगू तुला मी प्रिये कि तू माझ्या साठी कोण आहेस.
प्रिये सगळी कडे फक्त तूच तू.........
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विश्वास ठेव तू माझ्यावर मी त्या
टाळ्यासारखा आहे जो तुटेल पण
चावी कधी बदलणार नाही....-