कितना बुरा है
फ़ोन का होना और तुम्हारे कॉल्स का नहीं आना,
रात का आना और तुम्हारी आवाज़ को नहीं सुन पाना,
एक शहर में होना और सालों ना मिल पाना,
दो चार बातों के लिए तरस जाना,
तुम्हारी सूरत देखे सालों बीत जाना,
कितना बुरा है
ज़िंदा होना और ज़िंदगी में तुम्हारा नहीं होना....-
है परिंदा मेरा वजूद, तेरे इश्क के पिंजरे में कैद हो जाने दे,
आवारगी मुनासिब नहीं इसे, जब पर ही नही तो परवाज़ कैसी....-
की जब सारा जमाना मुझे मेरे खिलाफ लगता,
तुम रहती मेरे साथ, और कहती की ' तुम सही हो ',
की जब कहीं बाहर जाते, मैं तुम्हें सड़क पर अंदर की तरफ चलने बोलता, की तुम बातों में गुम होती तो कलाई से पकड़ कर, एक तरफ खीच लेता,
की कही तुम टकरा ना जाओ,
की मैं किसी बात पर रूठ जाता तो तुम मुझे मना लेती, और जब मैं मान जाता तो तुम्हारी आंखों की चमक बता देती की तुम्हारा कितना मन लगा है मुझ में,
की किसी रविवार को आलसी दोपहर में, अलसाये से बैठे, तुम्हारे पार्लर के पैसे बचाने के बहाने तुम्हारे नाखूनों को नेल पेंट से रंगना चाहता था,
की किसी दिन जब मंदिर जाते, मैं ताकता तुम्हें की कैसे तुम प्रार्थना करती और जब तुम आंखे खोलती और तुम्हे देखता पा कर मेरा चेहरा भगवान की तरफ घुमाती, और आंखों से ही इशारा करती..
की मैं बस एक ही बात मांगता की तुम्हें हर खुशी मिले,
की सारी दुनिया की परेशानियों से हट कर, हर मुश्किल में, तुम बस इतना कह देती की ' मैं हूं ना, सब ठीक हो जाएगा '..
हां, इस शोर से भरी दुनिया में,
तुम्हें सुकून और ख़ामोशी का अपना लम्हा बनाना चाहता था..
जाने मैं जिंदगी से इतना क्या चाहता था...-
की तेरे नाम के साथ मेरा नाम जोड़ के,
मेरे नाम को तेरी मुस्कुराहट की तरह खूबसूरत
बनाना था,
की जब कुछ गलत होता और मैं बुझे मन से लौटता,
तो तुम कहती " कोई न, होता है।" और मैं तुम्हें
दरवाजे की आड़ से देखता रहता, काम करते...
की मैं उड़ता सारे जहां में पतंग सा,
पर डोर तुम्हें ही थमाता, की तुम मुझे कभी
भी पास खींच सको, मैं लौट कर तो
तुम्हारे पास ही आता, उसी डोर में बंधा....
की तुम्हारे मुंह से अपना नाम पहली बार सुनकर
जो महसूस हुआ था, वो हमेशा महसूस करना चाहता था,
जब पहली बार अपने ही नाम पर प्यार आया था,
की जब किसी कागज के टुकड़े पर, तेरे नाम के आगे
मेरा नाम जोड़कर लिख के देखा था,
वो नाम हमेशा के लिए चाहता था...
की जिंदगी में बड़ी खुशियां नही, पर इसी तरह की
छोटी छोटी खुशियां समेटना चाहता था, इन्ही छोटी
खुशियों में जीवन की संपूर्णता देखना चाहता था..
जाने मैं जिंदगी से इतना ज्यादा क्या चाहता था...
-
तुम, मैं और एक अदद चाय का प्याला...
मैं क्या चाहता था,
की खुशबू इत्र की दराजों में रहने देता,
मेरा घर तो तेरी बनाई चाय से महकाना चाहता था...
की ये दिल अपनी रसोई में तुम्हारे हाथ से छूटे कप के चटकने की आवाज सुनना चाहता था...
की चलो चाय मैं बना दिया करूंगा,
तुम बस साथ खड़ी रहना, मुझे देखते नजर भर के,
की जब तुम्हारे सर में दर्द होता तो अदरक
इलायची कूट कर तुम्हारे लिए चाय बनाता और लाता,
हौले से तुम्हारे माथे को चूम के,
देखता तुम्हें घूंट भरते और तुम्हारे सुकून के भाव...
की किसी भीगी सी ठंड भरी शाम में, वही भाप उड़ाती
चाय के कपों से चुस्की लेते, की पसंद का नगमा
साथ गुनगुनाते, लम्हों को जोड़ लेना, थाम लेना चाहता था..
जाने मैं जिंदगी से इतना ज्यादा क्या चाहता था... 💞-
जिसे जीना चाहता हूं, हां तू वही जिंदगी है,
चिनार के ऊंचे पेड़ों की छांव में,
डूबते सूरज के साथ, हम तुम कुछ अपनी सी बातें करते..
पूरे चांद की रात में, समंदर किनारे रेत पर,
बैठे हुए, लहरों की आवाज और कुछ तुम्हें सुनते,
किसी शाम को डूबते सूरज के साथ,
नदी में नाव पर डोलते हुए,
कुछ तुम्हारी पसंद का गुनगुनाते हुए,
किसी दिन बरसते पानी में,
तुम्हारी किसी पसंद की जगह,
कॉफी की खुशबू और भाप उड़ाते प्यालों के बीच,
तेरी कत्थई सी आंखों में देखते,
तेरी हाथ की छुअन को महसूस करते,
जिसे जीना चाहता हूं,
हां, तू ही तो वो जिंदगी है...-
पूरा हक है तेरा मुझ पर, तू सब जताया कर,
मैं ना बताऊं पर तू पूछा तो कर,
यूहीं खामोश ना रहा कर, जिक्र तो कर,
तेरा रहा हूं, रहूंगा, मान तो लिया कर,
सालों से पड़ा हूं आ कर तेरे शहर में,
याद कर, मुस्कुरा, और मिल तो लिया कर,,
हो ठंडी बयार या बारिश, खुद के लिए चार लम्हें,
दो मेरे लिए, दो हमारे लिए, निकाल तो लिया कर,
माना कुछ बातें हमारे बस में नहीं,
बताया कर, जताया कर, हक़ से बोल तो दिया कर...-
आसान नहीं है तुझ से इश्क़ करना,
तूने चुनी खामोशियां और मैं हमेशा मुखर रहा,
मैने चुना तेरा फैसला और खुशी,
और खुद के लिए जिंदगी भर की खलिश,
आसान नहीं था तुझ से इश्क़ निभाना,
जूनून की हद तक जाना और पागल कहलाना,
तेरे लिए ही रहा ये पागलपन,
क्योंकि तू ऐसे याद आती है जैसे मैं सांस लेता हूं,
आसान नहीं था तेरे इश्क़ में डूब जाना,
यादों को ढालना आया लफ्जों में,
कविताओं में सजीवता आई तुझ से,
लफ्जों से भरी, पर खामोशी से मन छू लेने वाली,
आसान नहीं था तेरे इश्क में फना हो जाना..
माना और समझा की कुछ रिश्ते बेवफाई नही,
पर जिंदगी ने कुछ और चुना हमारे लिए,
कुछ भी आसान नहीं था, ना अब है, ना कभी रहेगा... ,💕💞-
💞
क्या लिखूं की छू लूँ मन तुम्हारा,
कोई कविता या ऐसी बात जो तुम्हे पसंद आए,
क्या लिखूं की हमारी बात हो जाये,
कह दूं सब मन की बातें, भावनाएं,
क्या कहूं की तुम्हारा दिल भीग जाए,
कुछ पुरानी बातें याद कर के,
क्या कहूं की मन भर आए,
कुछ लम्हें जो अब तक ठहरे हुए हैं,
क्या दिखाऊं जो आंखों के रास्ते दिल में उतर जाए,
वो कुछ जो मन को छू जाए,
क्या करूं जो तुम्हें बेचैन कर दे,
जो तुम्हें मिलने मजबूर कर दे,
क्या करूं जो तुम्हें खुश कर दे,
पर किया वही, सब जो तुम ने चाहा था,
खुद को खो बैठा मैं तुम्हारे लिए,
क्योंकि माना था हमेशा की,
मुझ से ही तुम हो, तुम से ही मैं हूं. ... ....
💞-
बोल भी दो, कुछ कहो कि मुस्कुरा दूं मैं...
देख लूँ दो पल को, की तुम्हें महसूस कर लूं मैं,
सुबह की लालिमा सी तुम,भीगी ओस की बूंदों सी तुम,
एक बार मिल लो तो, सर्दियों की धूप देख लूं मैं...
अदरक डली चाय सी, या कड़क कॉफी की महक सी हो तुम,
एक बार और तुम्हें और तुम्हारी खुशबू, महसूस तो कर लूं मैं...
टीन पर गिरती बारिश की बूंदों की आवाज सी,
या रेडियो पर दूर कहीं बजते मनपसंद गाने सी,
और एक बार, ठीक से तुम्हें सुन तो लूं मैं...
अरे सुन भी लो, ओ बारिशों के शहर वाली लड़की,
मिल भी लो अब कुछ पल दो पल के लिए,
अगली मुलाक़ात तक के लिए, कुछ और यादें तो समेट लूं मैं...-