,अलौकिक दुनिया है मेरी,
स्वयं भू हूँ 'मैं',
धमनियों से बहता, शिराओ से बहता,
क्या जान सकोगे तुम कि ,
बताओ रक्त शुद्ध कहां??
है कोई पैमाना,जो बता सके,
ह्रदय काट कर रखा है,
बताओ इसमें विरह वेदना कहां ??
अपने रक्त से लिसे पाव,
इस 'विष्णु' धरा पर छाप दिए,
बताओ इसमें छाप कहां ??
छोड़ चली अपने पीछे अपने ही निशान,
कि, बताओ इसमें दोष कहां ??
समस्त संसार हैं घर मेरा ,फिर भी,
बताओ कि, मेरा घर हैं कहां ??
वेद, पुराण, सब धरे के धरे रह गए,
कि, बताओ जीवन मे समाहित कहां ??
शब्द, अर्थ, अलंकार, अभिव्यक्ति,
सब रच ली, तो बताओ अब,
कि, इन सब मे वो 'रस' कहां ??
जवाब हूं ,सवाल हूं,फिर भी बताओ, 'तुम'
मुझे समझ सके कहां ??
अलौकिक दुनियां हैं मेरी,
स्वयं भू हूं 'मैं' !!!
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