लिख दी हैं.. के क्या- क्या बिता राह-ए-मुहब्बत में
वो मैंने.. सारी बातें लिख दी हैं,
जो ख़ैरात में उसने दी थी मुझे
वो उसकी सारी सौगातें लिख दी हैं,
जो क़भी... शिक़ायत थी मुझे बारिश से
के वो शज़र क्यूँ पीछे छोड़ दिया,
और सूखे पत्तों सा जो मुझे वहा के ले गईं
वो सारी.. काफ़िर बरसातें लिख दी हैं,
हाँ.. गढ़त थे कई भाव मेरे
कई कल्पनायें थीं.. अविकल सी,
के.. जो उससे क़भी हुईं नहीं
हाहा..हा.. वो मुलाकातें.. भी लिख दी हैं,
पर कैसे कह दूँ के जुगनू वो सारे मिथ्या थे
निकले थे जो बेरन रातों में,
और अंधेरों में जो साथ चले
वो सारी... तारों की बारातें लिख दी हैं,
हाँ.. दिन अभी भी हैं बंजारे से
उसकी ज़ुस्तज़ु.. में जो.. गुजारे थे,
बाकी.. उसके ख़्वाबों में जो बीत गयीं
वो सारी.. तन्हा.. हिज्र की रातें लिख दी हैं !!!-
तुम्हारी बेरुख़ी ने
रुख़ मोड़ दिया
हँसता था जो चेहरा
उसपर दुःख मोड़ दिया
क्या क्या नहीं चाहा था
सब कुछ पीछे छोड़ दिया
अब तो ऐसा लगता है
सारा सुख मोड़ दिया
तुम्हारी बेरुख़ी ने
रुख़ मोड़ दिया
प्यार करना अलग
और उसको निभाना अलग
क्या करना है अब
और क्या निभाना है अब
तुमने तो सब कुछ झिंझोड़ दिया
तुम्हारी बेरुख़ी ने
रुख़ मोड़ दिया-
तुम्हारी खुशी के खातिर हार गए तुमसे
वर्ना अभी हमारे पास भी दाव कम नहीं थे-
तुम्हारी यादों के बादल हमारे साथ जायेंगे
गर भूलना चाहो तुम तो बेशक हमें अश्कों में बहा देना-
चाँद से बातें तुम्हारी हर रोज करते हैं,
देखो, दूर होकर भी हम कितने पास रहते हैं।-
मेरी ज़िंदगी मे मेरी आश तुम हो,
पर कह नहीं पाता हूँ बस तुम हो।
मेरी इस किताब की पन्ना तुम हो,
मेरी कहानी की अधूरी किस्सा हो।
मेरी धड़कनों की जरूरत तुम हो,
जो पूरा न हो सके ख्वाब तुम हो।
मेरे जिने की वजह भी तुम हो।।
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घायल किया जब अपनो ने
तो गैरो से क्या गिला करना
उठाये है खंजर जब अपनो ने
तो जिंदगी की तमन्ना क्या करना-