तहजीब कपड़ों से नहीं
संस्कारों से आती है...-
बहुत बड़े होते हैं वो जो झुककर बात करतें हैं,
आपकीं तहज़ीब ही परवरिश का नतीजा बताती हैं!-
उसे भी कहां इश्क की तहजीब आती है,
भरी महफ़िल में
वो मुझसे मिलने तो आती है,
पर मुझे छोड़
वो हर किसी से मिल कर जाती है...-
तालीम तहजीब की बराबर मिल रही है उसे,
घुट रहा है एक और बचपन रिवाज़ के दायरे में !-
जैसी हो वैसी देखती क्यों नहीं,
यूं अच्छी होने का दिखावा कैसा?
जब प्यार ही नहीं है मुझसे तो,
यूं प्यार जताने का दिखावा कैसा?
प्यार तो किसी और से है तुम्हें,
तो हमसे जताने का दिखावा कैसा?
जब भरोसा ही नहीं है मुझ पर,
तो भरोसा जताने का दिखावा कैसा?
एक रिश्ते में टिकती क्यों नहीं हो,
यू दूसरे रिश्ते का दिखावा कैसा?
गलती तो इतनी बड़ी की है,
अब माफी मांगने का दिखावा कैसा?
प्यार, अदब, तहज़ीब, सलीका, ये ढोंग क्यों?
अब मासूम चेहरे का दिखावा कैसा?
जैसी हो वैसी दिखती क्यों नहीं हो,
यू अच्छी होने का दिखावा कैसा?
-Uv🌦️
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सुलगती पेट की आग दिखाए किसे
दो वक्त की रोटी नहीं हाल सुनाए किसे
इस पैसो के बाजार में बदल चुकी है
हर रिश्तों की तहज़ीब ये किस्सा सुनाए किसे
आजकल दिखावे का दौर इतना है यारों
जिन्दगी कितनी कश्मकश में सुनाए किसे
अपने ही छोड़ गये मुफलिसी भरी वादियों में
बेमिसाल निकला अपना ही खून सुनाए किसे
सुनने वाला बैठा है कौन यहाँ पर Queen"
खुशियाँ खेलती आँख_मिचौली दिखाए किसे !!-
ये तेरा शहर भी तेरी ही तरह अजीब है
कि यहां इश्क़ करना भी एक तहज़ीब है-
'लखनऊ'
तुम संसद से होते जा रहे हो ,
क्यों तहजीब खोते जा रहे हो ।
तुम्हारी हवा अब दिल्ली सरीखी हो चली है,
तुम्हारी रेवड़ी तिल्ली सरीखी हो चली है।
शहरों में भी तुम गांव से लगते थे हमको,
चिलकती धूप में भी छांव से लगते थे हमको।
यहां हर शख्स ही खुद में भिखारी हो चला है
नवाबों का शहर अब तो शिकारी हो चला है।
इमारत को यहां फिर से सजाया जा रहा है,
तुम्हारी शान में बाजा बजाया जा रहा है।
यहां पर गंज है, बागें वही हैं,
बहुत से पेड़ , पर शाखें नहीं है।
मुकदमें बहुत सारे अब यहां दायर हुए हैं,
वही तहजीब लौटा दो जहां शायर हुए हैं।-
मुझे माफ करना ऐ मेरे दोस्त,
जो तुम चाहते हो वो हम दे नहीं सकते...
और हम जो देना चाहते हैं वो आप ले नहीं सकते...।
क्योंकि आप अपने दिल से मजबूर है,
और मैं अपने तहज़ीब से मशहूर हूँ...।-