देह प्रेम
बात महज देह प्रेम तक था ,
मोहब्बत का फिर क्यूं नाम दे दिया
बेजुबां और मासूम से इश्क को ,
हाय तुमने बदनाम कर दिया
एक की क्यों जिक्र करूं जब दोनों भागीदार है,,,
क्या लड़की क्या लड़का , यहां दोनो गुनहगार है...
इश्क अब इश्क न रहा व्यापार हो गया है
चाहत किसी को रही नहीं किसी की ,,,
हर शख्स जिस्म की भूख का बीमार हो गया है...
न रही मोहब्बत न रहे मोहब्बत निभाने वाले,,,
मुखौटे के पिछे छिपे बैठे हैं जिस्म से दिल लगाने वाले...
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