Pulwama Attack : - " A Pain of Kashmir "
अजीब है ये वादी-ए-कश्मीर, गुलजार है बर्फ की चादर से..
आज क्यों!है ये खामोशी, मानो बयां कर रही है अपनों के ही मजार से..
रुख कर चुकी फौज-ए-हिंद पुलवामा की तरफ,भारत मां की इबादत लिए..
दूजे ओर घात लगा बैठे कुछ देहशतगऱद, ख्वाब-ए-जन्नत की चाहत लिए..
सोची समझी थी ये चाल,मौलाना मसूद के जिहाद में..
झोंके गए कुछ कश्मीरी चेहरे, जैश-ए-मुहम्मद के इत्तिहाद में..
फैली है यह खूनी रंगत,दरिया-ए-झेलम तेरी सूरत पर..
दफन हो गई ये अमर फौलादी जिस्म,वादी-ए-कश्मीर तेरी कुदरत पर..
दी गई नापाक तालीम, जन्नत-उल-फिरदौस के हसरत में..
जहन में पिरोई जिहादी ख्याल, वादी-ए-कश्मीर तेरे नुसरत में..
बेजान सी है ये चिनार दरख़्त, दर्द-ए-शिद्दत के शहादत में..
नहीं है लौटी इसकी नूरमाई रंगत,वादी-ए-कश्मीर के इबादत में..
महफूज है तेरी रूह ये वादी-ए-कश्मीर, पश्मीना के जतन में..
आखिर चल पड़ी है ये शहादत जिस्म, वतन-ए-हिंद के कफन में..
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