कैसे ना करती अनुष्ठान पूरा मैं
मुझे तो करना ही था दुनिया
को दर्द
क्या दिखाती मुझे तो हर हाल मे हसना
था प्रेम पूजा प्रेम अर्पण का पाठ
मुझे ही पढ़ना था अपनी चाहतो
से विमुख मुझे तो होना ही था
जो ना करुँगी तपस्या माँ पिता का सर
नीचा हो जायेगा हर कोई
मुझे ही धिक्कार जायेगा
समझेंगा ना कोई पर लक्छन हर
कोई लगाएगा मेरी तकलीफ
कभी कोई ना जान पायेगा
मैं खुश हूँ इस जँहा उल्फतो
से जो मुझे आगे बढ़ा रहीं है-
कोई उलझी हुई पहेली आज हल हो गई,
मन में नाचा मोर और बादलों में हलचल हो गई,
उसकी एक झलक पाते ही क्या बताऊँ यारों,
मेरी की हुई जन्मों की तपस्या सफ़ल हो गई।-
और जानता है
ये प्रेमी मन भी
प्रेम 'प्रतीक्षा' चाहता है
और संगम 'तपस्या'
•••••[पूर्ण अनुशीर्षक में]•••••-
एक लंबे अंतराल के बाद
जब दो प्रेमी मिलते हैं
उनका आलिंगन प्रतीक है
प्रेम की तपस्या और
उसके उच्चतम प्रतिफल का-
विरह की अग्नि में जल तपस्या मैं कर रही
तो अनवरत प्रतिक्षा में तुम भी तो होंगे
पा कर तुम्हें सप्तपदी वचनों से, फिर खोया
अधूरी हूँ यहाँ, तो पूर्ण तो तुम भी तो नहीं होंगे
कुम्हलायी ,निस्तेज, निर्जीव सी ढोती हूँ काया
फूल सा तन, सुरभि-सा मन तुम्हारा भी तो ना होगा
चेहरे की फीकी हँसी से ढकती हूँ उदासी की लकीरें
हँसी उजली वो नीली चमक तेरे चेहरे पर भी ना होगी
सुवास रहित निर्जन पथ पर एकाकी सफर पर हूँ मैं
महकती ,चमकती चाँदनी यामिनी में तुम भी तो ना होगे
आँखोंं से बहते हैं अविरल अश्रुजल की धारायें
तेरी आँखों से खुशियो के अक्षुनीर तो ना झरते होगे
अनजानी नियति से बँधी हैं जो सारी दिशाएँ हमारी
ये सत्य है,ना मैने चाहा था इसे ना ही तुम चाहते होगे
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किसी आस्तिक की आस्था,
और एक कलाकार की कला पर,
कभी किसी को सवाल नहीं उठाना चाहिए।
क्योंकि न जाने किसकी तपस्या कब पूरी हो जाए,
और उसकी भक्ति, शक्ति में बदल जाए।-
तुम ध्यान भटकाती अप्सरा हो,
मैं तपस्या में लीन प्रिय ।
मैं शांत श्रीलंका सा, तुम धोकेबाज चीन प्रिय ।।
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मेरे प्यारे पापा,
पापा आज शायद पहली बार आपसे कुछ कहने जा रहा हूँ ।अक्सर हमारे बीच मतभेद हो जाते होंगे , कभी आप सही होते थे तो कभी मैं पर आपने कभी खुद को हम पर थोपने की कोशिश नहीं की। शायद मैंने लोकतंत्र तो बहुत बाद में जाना पर मेरी परवरिश एक ऐसे लोकतांत्रिक परिवेश में हुई जहां सब को अपनी बात रखने की आजादी थी। हां ,पर आपने हमें स्वतंत्रता दी पर स्वच्छंद नहीं किया क्योंकि आप हमेशा कहा करते थे कि बन्धनयुक्त आजादी ही शोभा देती है। एक ऐसा गांव जिसकी हवा में ही जुआँ और शराब घुल चुके थे उसकी हवा से हमें बचाने के लिए आप हमेशा कवच बन के हमें ढके रहे। जिंदगी में एक आदर्श भाई,आदर्श पिता,आदर्श पति और आदर्श पुत्र के रूप में संतुलन बनाकर रखना मैंने आप ही से तो सीखा। आप कभी अपनी गुजरी जिंदगी को बयां नहीं करते कभी कभी अम्मा(दादी बताया करती हैं किआपने किस तरह घोर गरीबी के बादलों को चीरकर अपने लिए रास्ता बनाया। वो अक्सर बताते बताते खुद भावुक हो जाती हैं वो बताती हैं कि बचपन में आपके पास तन ढकने के पैसे नहीं होते थे । साल में बमुश्किल कहीं एक बार सबसे सस्ता कपड़ा खरीदकर आपलोगों को कच्छे सिला दिए जाते थे बस। आपने हाईस्कूल भी एक फ़टे पायजामे में पूरा किया । परिवार के बड़े होने नाते आप जैसे सबको साथ लेकर चले वो कभी जिम्मेदारियों से मुंह न मोड़ने का पाठ सिखाता है।
(Rest in Caption)-