कर्फ्यू भी जरूरी है , बातचीत में,
दंगें भड़क न जाये, डर लगता है..-
आज भी जब .. साँझ ढलते ही बुझा दी जाती हैं
सरकारी बत्तियाँ
और मैं रोज़ की तरहा .. उसी सड़क पर अटक जाती हूँ
किसी गाड़ी में .. उसका पेट्रोल ख़त्म होने पर
देखती हूँ आस पास
दो लड़के पिछली सीट पर होते है .. मोबाइल में नज़रे गढ़ाए
ड्राइवर उतर चुका है गाड़ी से .. और जा टिका है पहाड़ी पर
तब मैं उतर जाती हूँ गाड़ी से
और खड़ी हो जाती हूँ .. खाई की मुंडेर पर
हर तरफ अँधेरा है .. रास्ता भी नहीं दिखता
दूर दूर तक कोई गाड़ी भी आती नहीं दिखती
मोबाइल का नेटवर्क भी पुराने ज़माने के कबूतरों सा है
पहाड़ों में धुंध भी उतरने लगी है .. दिल बर्फ़ की तरह जमने लगा है
ठंड गरम कपड़ों को भेद रोंगटे खड़े करती है
हवा की सांय सांय बेचैन कर देती है
और ख़ामोशी को चीरती नदियों का शोर
मुझे बुलाता है .. कि अब कोई चारा नहीं बचा
तीन जोड़ी आंखें .. तीन जोड़ी हाथ और तीन जोड़ी पैर
बढ़े तुम्हारे करीब .. उस से पहले
तुम पार करो मुंडेर और समा जाओ मुझ में
..
एक दम को सांस भर .. मैं उठाती हूँ पत्थर हाथों में
और अपनी चिंता और डर को .. फेंक देती हूँ बहती नदी में
..
इंतज़ार करती हूँ .. तुम्हारा
तुम आओगे .. ये जानती हूँ मैं।-
वो खफा-खफा सी रहने लगी,
डरता हूँ... कही अब जुदा तो नही होने लगी है ...-
डर है मुझे
उसी एहसास से
खुद से कुछ तुमसे
ख़ुद के टूट जाने से
तेरे बिखर जाने से
वही पास आने से
फिर दूर हो जाने से
इश्क़ हो जाने से
पर सुनो
कुछ दूर साथ चलते हैं
मंज़िल तक नहीं
राह के हमसफ़र बनते हैं
हाथों में हाथ नहीं
धड़कने एक साथ नहीं
इश्क़ नहीं बस
मोहब्बत फिर से करते हैं-
के मंज़िल मिलेंगी या नहीं
डर तो इस बात का है , कहीं
मैं मंज़िल के चक्कर में अपने
सत् सत्य वैचारिक संस्कारों को ना
भूल जाऊं मैं अपने अस्तित्व को ना छोड़ दूं।
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डर कभी ना लगा उन लड़कों से
जब देर रात अकेला लौटा पहले
डर आज कुछ ज़्यादा लग रहा
बहना साथ जो मेरे है टहले-
तुम्हें पाने की जिद्द में,
कहीं वह ना खो दूं...
जो पहले से मेरा है..!!-
डर रहा हैं दिल मेरा
एक छोटी सी बात से,
बदल ना दे हमारी कहानी कोई
प्यार की खूबसूरत झूठी मिठास से |
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झूठी होतीं नारियाँ, व झूठे होते नर
होता सच का सामना, तबहिं लागै है डर-