रजाई की रूत गरीबी के आँगन दस्तक देती है,
जेब गर्म रखने वाले ठंड से नही मरते ।।-
आतिश-ज़नो से कहो आग लगा आयें किसी महल में
सुना है ग़रीब की झोंपड़ी में आज ठंड बहुत है
- साकेत गर्ग 'सागा'-
मुक्कमल होने को तरशता रहा वो चांद
इतनी ठंड में भी आसमां में निकलता रहा!-
आप ठंड से रजाई में दुबके हो,
वो बाहर रिक्शा लगाए, बिना स्वेटर के कांप रहा ।
दो दिनों से बोहनी का इंतजार है,
उसका "बेटा" उसके घर आने का राह ताक रहा ।
-
कौन निकले इतनी ठंड में मयख़ाने की ओर
तू जो हाथ लगाए पानी-पानी फिर शराब है-
मेरे जिस्म में 'तेरी क़ुर्बत की ख़ुशबू' कुछ यूँ समाई है
ठंड में ठिठुरते किसी बच्चे को जैसे मिली एक रजाई है
- साकेत गर्ग 'सागा'-
जाना तुम्हारा एहसास भी न
बिल्कुल बारिश की बूंदों सा है
हाथ भींगे तो है
पर हाथ में कुछ नहीं — % &-
पिछले काफी दिनों से
देखा है मैने के
काफी ठंड होने की वजह से
मेरे विचार
लिखना छोड़
लोगो की भांति कंबल ओढ़कर बैठ गए है
तो लगा के
वो पुराना सा
थोड़ी लकड़ियां और
आग के बीच खेले जाने वाला खेल
मेरे विचारों को भी दिखा दू
ताकि ये विचार
वो खेल देखकर
थोड़ा जोश में आ जाए और
शायद फिर से लिखना शुरू कर दे !
-