क़ुर्बतों में भी फासलों की झलक देखी है,
देखा है मुस्कुराती पलकों को टूटते अक्सर !-
तेरी आवारगी में भी वजह खुद को पाते हैं,
देखते हैं हर रोज तुझमें खुद को टूटते हुए !-
जब इंसान अपने सपनों को टूटता
अपनी आँखों के सामने देखता है
इतना बेबस हो जाता है कुछ कर नहीं पाता है
अपने दर्द के घूँट को अंदर ही अंदर पीता है
जब मिला कर न चल पाता सबके कदमों से कदम
खुद ही कदम पीछे कर लेता है
बाहर से चट्टान जैसा स्वयं को सख्त दिखाता है
भीतर ही भीतर टूटकर कितने टुकड़ों में बिखर जाता है
टूटने की आवाज़ स्वयं ही सुनकर
आगे बढ़ने की कोशिश करता है
अपने टूटे सपनों की अर्थी अपने कंधों पर लेकर मुसकुराता खिलखिलाता सबसे मिलने जाता है
ईश्वर भी हो गया अचंभित
मैंने तुझे किस मिट्टी से बनाया है
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टूटते-बनते-बदलते रिश्तों की बात कैसे करूँ
ठहराव का आदी हूँ, बदलाव की बात कैसे करूँ
- साकेत गर्ग-
न रह जाए द्वंद कोई ,न रह जाए उम्मीद कोई, हम सब ऐसे हो जाए , इक दूजे में खो जाए, हम सब ऐसे हो जाए
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टूटते देखा था कभी स्पनों को
आज टूटते देखा है इसे पूरा करने के लिए अपनी को
लोग सपनों के लिए अपनों से दूर हो जाते है
और यहां अपने उनके खुशी के लिए मजबूर हो जाते हैं
ये वक़्त की बात है या समझ की बात है
लेकिन लोग आज की जज़्बात से हैरान है।-
# टूटते सपने #
टूटते सपने ने हमको ये सिखाया है
दूर ही सही, पर कोई हमसाया है-
हजार सपने देखे मैंने,रूठ गए,टूट गए सब,
बेबफा निकले सारे, नींदों में जा बसे सब,
हम थे मारे चितवन के तुम्हारे, क्या-क्या सपने चेतन मन ने थे संँवारे,ठिठक गए सब अवचेतन मन में हमारे,खुली आंखों ने जो भ्रम थे पाले, भ्रमित कर गए वो हमें सारे, सपने जो हमने तुझ पर थे वारे, याद नहीं कब हो गये बेसहारे,देखे जो हम संग सपने तुम्हारे, भूले-बिसरे नहीं आते कभी मेरे द्वारे,साँसों में रम गए जो कुछ पल, यादों के बर्फ में जम गये सब, सपने जितने देखें मैंने कल्पनाओं में थम कर रह गये सारे,हजार सपने देखे मैंने रूठ गए , टूट गए सब ।।-