रुख़सत ए महफ़िल का वक्त आ गया देखते-देखते सब हैरान रह गए सब्र मेरा देखते-देखते न दुआ मिली न दवा मिली फिर भी मुस्कुराते रहे हम सब्र की डोर थामे तय किया सफ़र जिंदगी का हँसते-हँसते मंज़िल न मिली न सही पर सब्र को नहीं छोड़ा हमने पूछेंगे सवाल खुदा से जब भी मिलना होगा क्यूँ भेजा नहीं फ़रिश्ता हमारे लिए कोई हम रह गए आस में तरसते-तरसते
उम्मीद की लौ क्या होती है? यह हमसे ज़रा पूछिए हमने भी उम्मीद की लौ कुछ यूँ जला रखा है है सब्र इसका तेल और बाती इंतज़ार बना रखा है मर जाना है एक दिन फिर भी जिंदगी से दिल लगा रखा है होती नहीं हैं पूरी कोई भी ख्वाहिशें फिर भी आँखों में कई सपने सजा रखा है जल कर खाक हो जाना है इस जिस्म को फिर भी इसे अपना समझ सजा रखा है कहते हैं उम्मीद पर ही कायम है यह दुनिया बस इसी उम्मीद से हमने भी उम्मीद लगा रखा है
सुकून की तलाश ने लोगों को कुछ यूँ बेचैन कर रखा है मंदिर ,मस्जिद,काबा,काशी न जाने कहाँ-कहाँ लोगों ने भीड़ लगा रखा है मिलती नहीं खरीदने से यह ऐसी चीज है वरना मैंने तो दौलत का अंबार बना रखा है ढूँढने बाहर जाकर गलती करते हैं लोग इसे यह तो उस कस्तूरी की तरह है जो मृग की नाभि में ही छिपा रहता है
सफ़र ज़िंदगी का हमने कुछ यूँ गुज़ारा है दम तोड़ देते हैं जहाँ सब्र सबके हमने वहाँ भी सब्र दिखाया है खुदा की नजरे इनायत ना हो ना सही फिर भी उसके सजदे में सर अपना झुकाया है