"जुगनु" सा.. हिस्से में रात लेके बैठा है
दिल कुछ ऐसे हालात लेके बैठा है,
शायद उसे मुहब्बत हो जाये मेरे सफ़ेद बालों से
दिल...अब भी वही पुरानी बात लेके बैठा है,
कहे टूटा ही सही.. पऱ प्यारा है मुझे
बच्चा खिलौना वही पुराना.. हाथ लेके बैठा है,
अब.. लौटना मुम्किन नहीं है जिसका
मन बेवक़्त.. अब उस गुजरे वक़्त की याद लेके बैठा है,
कितना ख़ूबसूरत है.. मेरी तन्हाई का आलम
मेरा जिस्म.. इक़ साया साथ लेके बैठा है!!-
क्यूँ सोच में तू पड़ा है 'धर्मेंद्र'
क्या तुमको परेशानी आई है।
मखमली गद्दे में बताओ भला।
किसने चैन की नींद पाई है।।
राहों में चलते-चलते फिर क्यूँ।
मन में नींद की तलाश जगाई है।।
घने अँधेरे में भी आगे बढ़ना।
हमने तालीम जुगनू से पाई है।।-
दिलो मे कशमकश रखके रिश्ते निभाये नहीं जाते,
अँधेरों मे ज्यादा दूर तक साये नहीं जाते!
बिना रहबर तू कॆसे राह ढूँढेगी ए मुसाफिर,
पथरीली राह कदमो के निशां पाये नही जाते!
नक्शे देख पढकर ही तू अपनी ढूंढ ले मंज़िल
ले थाम ले उंगली मेरी, अब अकेले नहीं जाते!
नही जज्बात दिल मे तो मिलने से क्या हासिल,
दिल की ख़्वाहिशों को यूँ दफ़न किये नहीं जाते!
ये सपने है तो फिर बचा के रखो रात के खातिर,
उजाले मे खुली आंखों ये दिखलाये नहीं जाते!
अँधेरों मे जरूरत रोशनी की पड ही जाती है,
यूँ जुगनु देखकर चिराग बुझाये नही जाते!-
अगर कहूँगा किसी रोज़ की ये सूर्य की लाली
तुम्हारी गालों की लाली के सामने कुछ भी नहीं ,
तुम शरमा तो जाओगी सुनकर ,पर बोलो ,
यकीन तो करोगी ना !
अगर कहूँगा किसी रोज़ की ये सफेद चाँद
तुम्हारे चेहरे के तेज़ के सामने कुछ भी नहीं ,
तुम शरमा तो जाओगी सुनकर ,पर बोलो ,
यकीन तो करोगी ना !
अगर कहूँगा किसी रोज़ की ये चमकते जुगनु
तुम्हारी चमकती आँखों के सामने कुछ भी नहीं ,
तुम शरमा तो जाओगी सुनकर ,पर बोलो ,
यकीन तो करोगी ना !
-
दिल से जब अपने निकालना चाहती हूँ तुम्हें,
तुम हो कि सामने आ कर के खड़े हो जाते हो,
नए ख़्वाब अब बुनना चाहती हूँ, और
तुम अपने ही ख़्वाब याद दिला जाते हो।
बार बार भूलने की कोशिश करना चाहती हूँ तुम्हें,
तुम हो कि अपनी ही अहमियत जता जाते हो,
दिमाग से काम लेना चाहती हूँ अब, हर बार
तुम हर बार बस दिल को ही जिता जाते हो।
पतझड़ का मौसम बन बार बार जीना चाहती हूँ,
तुम हो कि बार बार सावन बन भिगो जाते हो,
दिल के सब दरवाज़े बन्द कर लेना चाहती हूँ,
और तुम बन्द दरवाज़े पर दस्तक दे जाते हो।
मौत से रूबरू होना चाहती हूँ, बस एक बार
तुम हो कि बार बार ज़िन्दगी की राह दिखा जाते हो,
ज़रा सी भी जब अन्धेरे में जाना चाहती हूँ,
तो अा कर के जुगनु का झुण्ड बन कर आ जाते हो।
बस एक आखिरी बात कहना चाहती हूँ, तुमसे
चले गये तुम, यादों को साथ क्यों नहीं ले जाते हो?
दम घुटता है मेरा अपने ही शहर में तुम्हारे बिना,
बताओ,मुझे भी क्यों तुम परदेसी नहीं बना जाते हो?-
अपनी राह का जुगनु बनाओ खुद्को
दुनिया तो अपने उजाले के लिये
चांद बनाने की फिराक मैं है तुमको-
गुरूर जुगनुओं का टिमटिमा रहा है
आज अमावस है -
फ़लक पे चाँद का राज नहीं है ||-
बादल के पीछे से सितारे भी तम्हें देखतें होंगे
इसी नुमाईस में जुगनु भी रात भर भटकते होंगे !!-
रौशनी की ही बस राह चलकर
फूल ही फूल पग रखकर जो बड़पाओगे
कैसे पथिक फिर तुम कहलाओगे
अंधेरों में जुगनु बन जो ना टिमटिमओगे
खुद के दीप्त स्त्रोत ना गर जगा पाओगे
कैसे पथिक फिर तुम कहलाओगे
पत्थरों को देख कर जो पीछे मुड़ जाओगे
चौराहों को पहुंचकर जो तुम भटक जाओगे
कैसे पथिक फिर तुम कहलाओगे
गन्तव्य का जो नक्शा लेकर चले हो
उसे साधने से पहले जो थक जाओगे
कैसे पथिक फिर तुम कहलाओगे
वक़्त की गिरह में जो उलझ जाओगे
सफ़र ए मुकाम तक पग चिन्ह जो ना छाप पाओगे
कैसे पथिक फिर तुम कहलाओगे
जीतने से पहले ही अगर हार मान जाओगे
सन्कल्पों की राह से जो डर के दूर जाओगे
कैसे पथिक फिर तुम कहलाओगे
-