इमरान खान   (इमरान)
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मैं अदम से भी परे हूँ !
Joined 29 October 2019


मैं अदम से भी परे हूँ !
Joined 29 October 2019
31 DEC 2021 AT 11:25

तू नया है तो दिखा सुब्ह नई शाम नई
वर्ना इन आँखों ने देखे हैं नए साल कई

साहिर लुधियानवी

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31 DEC 2021 AT 11:23


जब तुमसे इत्तेफ़ाकन मेरी नज़र मिली थी
अब याद आ रहा है शायद वो जनवरी थी
तुम यूं मिलीं दुबारा फिर माह-ए-फ़रवरी में
जैसे कि हमसफ़र हो तुम राह-ए-ज़िंदगी में
कितना हसीं ज़माना आया था मार्च लेकर
राह-ए-वफ़ा पे थीं तुम वादों की टॉर्च लेकर
बाँधा जो अहद-ए-उल्फ़त अप्रैल चल रहा था
दुनिया बदल रही थी मौसम बदल रहा था
लेकिन मई जब आई जलने लगा ज़माना
हर शख्स की ज़ुबां पर था बस यही फ़साना
दुनिया के डर से तुमने बदली थीं जब निगाहें
था जून का महीना लब पे थीं गर्म आहें
जुलाई में जो तुमने की बातचीत कुछ कम
थे आसमां पे बादल और मेरी आँखें पुरनम
माह-ए-अगस्त में जब बरसात हो रही थी
बस आँसुओं की बारिश दिन रात हो रही थी
कुछ याद आ रहा है वो माह था सितम्बर
भेजा था तुमने मुझको तर्क़-ए-वफ़ा का लैटर
तुम गैर हो रही थीं अक्टूबर आ गया था
दुनिया बदल चुकी थी मौसम बदल चुका था
जब आ गया नवम्बर ऐसी भी रात आई
मुझसे तुम्हें छुड़ाने सज कर बारात आई
बे-क़ैफ़ था दिसम्बर जज़्बात मर चुके थे
मौसम था सर्द उसमें अरमां बिखर चुके थे

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22 DEC 2021 AT 10:33

सुंदरता क्या है!

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20 DEC 2021 AT 16:10

कितनी दुखद बात है कि
तुम्हारे बालों में जो जुड़ा बना हुआ है !
उसके चारो ओर जो ,
लाल ओर नीले रंग के फूल का बगीचा है
दुनिया का शब्दकोश इतना गरीब है कि
उसे clature और क्लिप कहकर काम चलाना पड़ रहा है !

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6 JUN 2021 AT 23:30

जीवन में चाहे जो भी हो जाए, शादी जरूर कीजिए। अगर पत्नी अच्छी मिली तो आपकी जिंदगी खुशहाल रहेगी और अगर पत्नी बुरी मिलेगी तो आप एक न एक दिन दार्शनिक (philosopher)जरूर बन जाएंगे।

Socrets

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16 MAY 2021 AT 21:26

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो !!

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो !!

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो !!

कहीं नहीं कोई सूरज धुआँ धुआँ है फ़ज़ा
अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो !!

यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो !!

(निदा फाजली)

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12 MAY 2021 AT 10:25

दुर्गम वनो और उचे पर्वतो को जीतते हुए,
जब तुम अंतिम ऊंचाई को भी जीत लो।
जब तुम्हे लगेगा की कोई कोई अंतर नहीं बचा,
तुममे और उन पत्थरों की कठोरता,जीन्हे तुमने जीता।
जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ का पहला
तुफान झेलोगे और कापोगे नहीं।
तब तुम पाओगे,कोई फर्क नहीं,
सब कुछ जीत लेने में,
और अंत तक हिम्मत न हारने मै।

कुंवर नारायण

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9 MAY 2021 AT 20:08

बारिश की पहली बूँद को छुते हुए
जब तुम बर्फ़ की अंतिम शाखा को भी
पानी ना बनने दोगे!!
जब तम्हें लगेगा कोई अन्तर नही बचा
बूँद ओर बर्फ़ की कठोरता मे
जिसे तुमने पारदर्शी समझा !!

जब तुम अपने मस्तक पर पहला तुफान झेलोगे
ओर कापोगे नही !
तब तुम पाओगे कोई फर्क नही
पानी ओर बर्फ़ को एक समझ लेने मे !

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1 MAY 2021 AT 16:02


दिल्ली जो एक शहर था, आलम में इंतेख़ाब
रहते है मुंतख़ाब ही जहां रोज़गार के !!
उसको फलक ने लूट के वीरान कर दिया
हम रहने वाले हैं उसी उजड़े दयार के !!

मीर तकी मीर

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30 APR 2021 AT 18:15

बाल्कोनी में खड़े होकर
पीपल के पैड़ को निहारना
ठीक वैसा ही है !!
जैसे किसी मरते हुए को
ऑक्सीजन की अन्तिम ब्रेथ देना!

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