वो ज़िस्म का भुखा मोहब्बत के लिबास में मिला था
पहचानती कैसे उसे चेहरे पर चेहरा लगा कर मिला था
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...............वो आखरी वार मुझे बिस्तर पर मिला था-
जिस्मो पर टिकें रिश्ते को
खत्म क्या किया
उसका तो सच्चा प्यार ही
खत्म हो गया-
इश्क़ की तलाश, वो भी रुहानी।
तेरा ख्वाब अच्छा है, जिस्मानी।
मुकम्मल हो तो इत्तला करना हमें,
हम लिखेंगे एक अनसुनी कहानी।-
लबों पर हंसी है तो दिल में ये कैसी चुभन है
अरे ये मोहब्बत भी दोस्तों इक अजीब फ़न है
रूह से रूह का इश्क़ कहां मिलता है अब "निहार"
आजकल जिस्मानी इश्क़ का ही दौर ए चलन है-
दूध अपनी छाती का पिलाती हूं,
तब मैं मां कहलाती हूं
जब भी मंदिर में होती हूं,
पूजी में जाती हूं
रास्तों पर जब मैं निकलती हूं,
हवस का बाजार लग जाता है
पल्लू मेरा थोड़ा सा सरकते ही,
इंसानी भेष में छिपा,जानवर मुझे नजर आता है
ये जिस्म के भेड़िए भी,कमाल का हुनर रखते हैं,
होंठों पर हंसी,तो दिल में हवस रखते हैं,
हर गली मोहल्ले में,
आंखों से मेरा जिस्म नोच लिया जाता है
कपड़े होते हुए भी,
मुझे नंगेपन का एहसास होता है
ना चाहते हुए भी,
हर रोज आंखों से,मेरा बलात्कार होता है
वो दरिंदा ये भूल जाता है कि,
वो भी रिश्ते में,किसी औरत का,
भाई, बेटा,या फिर बाप होता है।-
भूला दोगी कैसे कि मैं,
कोई परिंदा परदेशी नहीं,
कतरा कतरा घुल गया हूँ,
तेरे जिस्म में, तेरी साँस में।
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वो ज़िस्म का भूखा मोहब्बत के लिबास में मिला था ,
पहचानती Read Full In Caption.....
कैसे उसे चेहरे पर चेहरा लगा कर मिला था,-
दिल-ए-रूह से जुड़े रिश्तों में मोहब्बत तो
अपने आप अता होती हैं....
कम्बख़त वरना जिस्मों की मोहब्बत तो
बाज़ारों में भी मिल जाती हैं...-
ऊंची बोली लगती है अब तेरे जिस्म की...
वो दौर भी कुछ और था,
जब हवाओं को इजाज़त चाहिए होती थी ;
तुझे छूने से पहले...-