इस संसार में
बोलना सबको आता है
पर सुनने का 'जिगरा' लिये बग़ैर-
ख़ुद को ग़लत मानने का जिगरा
बस एक सही आदमी का होता है।
कमजोर तो बस दूसरे को गलत
ठहराने में दिन काट रहा होता है।-
जुगनू सा हुनर रखता हूँ ,
रिश्ते कम सही चुनिंदा रखता हूँ ,
नही मेरी हैसियत में अभी , हसीनाएं और दौलत मगर ,
मुट्ठी से जिगरे से आफताब डुबाने का दम रखता हु ,-
सुनो !!! उसको सर्दी भी लगे , तो साँस अपनी रुकने लगती है ,,
सुध-बुध खोकर,भटक रहा हूँ दर-दर जिसे लेकर,वो छोटा भाई है!!
-
ख़्यालात अच्छे हैं ,
हुनर काबिले तारीफ़,
सम्मान सबके लिए ,
व्यवहार अपना सा हम भी रखते हैं ,
चुनिंदा नहीं पर बेशकीमती हैं ,
सारे रिश्ते दिल से जोड़े रखते हैं ।-
हर्फ़ नही चाहिए हमारी मुहब्बत को,
बयां करने के लिए,
बस तु मिल जा,
हम मुकम्मल हो जाएं।-
शराफ़त को कमिनियत से कभी जाके जगाना मत
समझना हो उसे तो मन लगाना दिल लगाना मत
जिस्म बेशक दिया है रब ने इंसानी मुझे लेकिन,
जान प्यारी हो तो जिगरा हमारा कभी आजमाना मत।।
:- अमृत मिश्रा-
गुलाम देश का पहला वो आजाद था।
पिघलता छाती पे जिसकी फौलाद था।
शेर सा जिगरा चीते सी यूं चपलता-
कुछ कर गुजरने को रहता बेताब था।
-
जुदा होके रोने वाले देखे हैं बहुत यार.....
बिछड़ के,जी के दिखा दे, वो जिगरा भी दिखे कहीं..!!-