सुनो न,
जब भी तुम्हें चाय की तलब होती है,
मुझे तुम्हारी तलब होती है,
तुम नुक्कड़ के लिए निकलते हो,
मैं तुम्हारे लिए...
तुम्हारा चाय की चुस्की लेना,
मेरा तुम्हें यूँ ही बस तकते रहना...
दिल को सुकून दे जाता है,
सोचा कभी करीब से मैं भी जी लूँ तुम्हें ख़ुद में,
क़म्बख्त ये नफ़रत चाय की ये हसरत पूरी नहीं होने देती।-
Pen Name - Mhbhargav
Residing in Uttar Pradesh
One line about you - work as co... read more
पता है.....
तुम चाय का ज़रा सा ज़िक्र भी कर देते,
तो मुझे चाय की तलब हो जाती..,
कम्बख़त ये चाय से नफ़रत भी न,
मोहब्बत कभी होने ही नहीं देती।-
ज़ब मूड खराब हो तो फूल भी कांटे लगने लगते हैं,
और मूड अच्छा हो तो कांटे भी चुनना अच्छा लगता है।-
.......... थी,
जब हम घर से निकलते थे,
सर पर छतरी एक छाँव लेकर निकलते थे,
पांव के नीचे एक पांव लेकर निकलते थे,
रुपया एक भी नहीं फिर भी एक बाजार लेकर लौटते थे,
वो भी क्या बचपन था जब हमारी बात ही कुछ और थी।
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जो आपके तन पर कपड़ा न छोड़े उससे कभी कपड़े की उम्मीद नहीं करना चाहिए,
जो आपके जेब में एक रुपया न छोड़े उससे रूपये की उम्मीद कभी नहीं करना चाहिए,
जो आपके थाली में एक निवाला न छोड़े उससे भोजन की उम्मीद नहीं करनी चाहिए,
जो आपका अपमान करता हो उससे कभी उपहार की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।-
किसी ने उससे पूछा ये बच्चे साथ लेकर क्यों आ जाती हो काम पर,
तुम्हें डर नहीं लगता काम से निकाले जाने का।
उसने कहा डर तो लगता है साहब बच्चों के भूखे रहने का।-
माँ कोई सबकी चिंता है क्योंकि वो माँ है,
मगर माँ की चिंता किसी कोई नहीं क्योंकि सबमें माँ नहीं माँ के लिए बातें हैं।-
माँ मतलब कुछ लोगों के लिए कुछ नहीं होता है,
और जिस दिन ये कुछ नहीं साथ न रहे उस दिन कुछ नहीं का असली मतलब पता चलता है।-
बच्चा : देख तू माँ है बच्चे को कुछ खिलाये बगैर कैसे खा सकती है,
बच्चे को दर्द हो रहा तू सो रही, कैसी माँ है,
थोड़ा सा काम करके थक जाती है,
ऐसा क्या करती है एक खाना ही तो बनती है कौन सा बड़ा काम करती है, सारा दिन करती ही क्या है?
माँ : एक दिन तू भी माँ बन जा और सारे दिन ऐसे मेरे जैसे कुछ नहीं करके दिखा।-