माँ की कृपा से नवरात्र हमारे हुए सफल,
भक्ति में झूमे है मन, जागा आतुर मनोबल।
रामजन्म की बेला लायी संदेश अमन का,
धर्म की राह दिखाते हुए राम बने संबल।-
रामदरबार की छवि सदा ही धर्म जगाती है,
सीता की पावन छाया सदैव लाज बचाती है।
सेवा में रत जो रहती सदा संकट के क्षण में,
हर युग में रामायण सदैव फिर दोहराती है।
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कुछ लोग बदलते हैं सदैव मतलब निकाल कर,
छोड़ेंगे तन्हा तुम्हें मुसीबत में डाल कर-
जो साथ निभाए सदा, उसी को ही तुम चुनना,
लोगों के बदलने का कभी भी अफ़सोस न कर।
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मोह सदा ही दुख दे जाता है,
मन को छलकर जाल बिछाता है।
छूट नहीं पाए बंधन उसका,
हर सुख में भी ज़हर मिलाता है।
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माना कि सभी ने किया आए दिनों बहाना,
ख़ुदगर्ज़ हुए सभी, छोड़ दिया साथ पुराना।
जो वक़्त पे काम आए रखना उसे दिल में,
लोगों के बदलने का न अफ़सोस मनाना।
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मर्ज़ लेकर गंदगी का हकीमों की गली छानते हैं,
स्वयं दिमागी बीमार हैं, पर वो ये कहाँ मानते हैं।
औरों को दिखाते हैं आईने बिना देखे स्वयं को,
ज़हर घोलते हैं हर सू, मिठास घोलना न जानते हैं।
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छोटी छोटी बातों को जीवन का उत्सव बना लेते हैं।
अपने हों या गैर, पल में रूठों को सदा मना लेते हैं।
कुबूल होती है उन्हें सदा मोहब्बत भी ब्याज पर यारो—
जो इश्क़ का ब्याज भी अक्सर सदा ही कई गुना लेते हैं।
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श्वेत वस्त्रों में तेजमयी, अद्भुत तेरी शान हो,
दुष्ट विनाशिनी, करुणामयी, भक्तों की जान हो।
अष्टमी पर तुझे जो भी श्रद्धा से ध्याता है माँ,
उसके जीवन में हर क्षण, तेरा सदा गुणगान हो।
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नज़र में ख़्वाब थे लेकिन ,हक़ीक़त डूबती सी थी,
कभी जो चाँद लगता था, वो सूरत रूठती सी थी।
बहुत कुछ कह न पाए हम, बहुत कुछ सुन न पाए वो,
मोहब्बत थी मगर हर बार ,किस्मत टूटती सी थी।-
जिंदगी में सफर जारी रखिए जरूर।
चाहे कितनी कठिन राह आए हुजूर।
सच्चाई से बांधो सदा अपनी प्रीत,
मन की बुराई को करो हमेशा दूर।
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