कितनी दूर तलक थाम सकोगे हांथ मेरा,
मैं गुनहगार हूं जानिब..अपने उसूलों को छोड़ने का..-
सुन एक बार फ़िर
तेरी बाहों के आग़ोश की जुस्तजू रखते हैं
तेरी बाहों में सिमटने की ख़्वाहिशें रखते हैं
ख़ुद को तेरी जानिब बेकाबू होने देना चाहते हैं
जब तस्वीर में तेरी शरारत भरी नज़रें देख लेते हैं-
क्या बताऊँ मैं सनम तुम्हारी इन नशीली आँखों
के बारे में 'ज़ानिब' जी करता है कि छोड़कर हर
जरूरी काम हर 'मुकदमा' तुझे 'निहारता' जाऊँ।
'इश्क़' के 'जज़्बातों' से उफनता हुआ एक गहरे
'समंदर' सा है तू 'जानी' जी करता है मैं खुद को
'ज़र्रा-ज़र्रा', 'कतरा-कतरा' तुझमें हारता जाऊँ।-
बातें तो हर किसी से होती हैं हमारी इस जहां में
लेकिन सबके साथ ये वाला इत्तेफ़ाक़ नहीं होता।1।
इत्तेफ़ाक़ भी तो हो ही जाता हैं यूँही कई मर्तबा
पर हर किसी के साथ ये एहसास नहीं होता।2।
दिल में बस जाते हैं अक्सर कई अनजाने से लोग
लेकिन हर कोई हमारे दिल का ख़ास नहीं होता।3।
शमां हैं तू ये सच है लेकिन जीना चाहता हूँ साथ
तेरे हर बार परवाना जल कर खाक नहीं होता।4।
इश्क़ कर के हर बार फ़ना होना जरुरी नहीं होता
कभी-कभी इश्क़ कर के आशिक़ खाक नहीं होता।5।
इंतज़ार किया है मुदत्तों से बस तुझको पाने को
ज़ानिब यूँही कोई इस दिल के पार नहीं होता।6।
कमाल के होते हैं तेरे आशिक़ाना नज़्म सभी बिन
इश्क़ के किसी के नज़्म का क़ीमती दाम नहीं होता।7।
लोग पूछते हैं नाम उस दिलनशीं का उन्हें बताओ
चर्चा इश्क़ का मशहूर यूँ सर-ए-आम नहीं होता।8।
इश्क़ के शहर में हमारा भी थोड़ा-बहुत नाम हैं 'अभि'
वरना यूँही हर शायर का यहाँ एहतराम नहीं होता।9।-
ए दर्द! तू मेरे 'ज़ानिब' से 'मीलों दूर' चले जा, कि अब उसके सबसे 'क़रीब' रहता हूँ मैं।
कि उससे अब तेरा कोई राब्ता नही, जब भी तू उसके पास आता है उससे यहीं कहता हूँ मैं।-
एक जानिब से दहक गया कोयला रंग लाल होगा
बेनाम वक़्त आने दे पर्दे के आगे सब कमाल होगा-
स्याह रातों को जागना अच्छा नहीं होता
बंद दरवाजों से झांकना अच्छा नहीं होता
इब्तिदा-ए-इश्क़ में रूबरू होना पड़ता है
यूं छुप छुप के ताकना अच्छा नहीं होता
तेरे हुस्न के चर्चे हैं अब सबकी ज़बान पे
यूं सर-ए-बाज़ार नाचना अच्छा नहीं होता
देखना मुज़िर है तुझे शब- ए -महताब में
चांद का चांद से सामना अच्छा नहीं होता
सहर अंगड़ाई न लिया कर मेरे दरीचे पे
के नशे में दुआ मांगना अच्छा नहीं होता
थोड़ा ठहर, वो खुद आये गा तेरी जानिब
हसीनों के पीछे भागना अच्छा नहीं होता
कुछ करो तो सुलझा दो खम-ए-ज़ुल्फ़ को
दिल को ऐसे उलझाना अच्छा नहीं होता
किनारे पर रहो तो ही सुकून-ए-ज़िन्दगी है
दरिया-ए-हुस्न में नहाना अच्छा नहीं होता।।-
#शाम_ढले की बात है
ठहरी हुई आँखो में नमी का इजहार तक नही शाम को
पूँछ रही जानिब का मंजर धुल भरी आंधी से घबराती वो
-
आदत है मेरी मंज़िल के जानिब जाने की
हसरत-ए-मसर्रत से उम्मीद-ए-फ़तह मिलती है-