वे लिखते हैं हिंदू-मुस्लिम,
ठाकुर, बामन और पठान।
सब इक दूजे पर हँसते हैं,
जैसे ऊदई वैसे भान।
धरम-जात औ' वंश घराने,
बस इतनी सबकी पहचान।
जी करता है काट गिराऊँ,
धर्म-जात वाली चट्टान।
कागज-पत्तर फाड़के फेंकूँ,
सब बँटवारे के सामान।
नाम के खाने में लिख डालूँ,
केवल और केवल 'इंसान'।-
ज़रूरत ही क्या है धर्म,
जात या पहचान की,
बिन इनके भी तो बन सकते हो
तुम वजह इसके मुस्कान की।-
एक दिन, तुम भी गर्द में मिल जाओगे,
हम भी, उसी गर्द में, मिल जाएंगे।।
अगर! फर्क दिख जाए, तेरे-मेरे, जात के मक़बरे में,
तो हम, उसी दिन, तुम से, मोहब्बत़ करना, भूल जाएंगे॥-
ऐ इश्क़ मत कर बगावत तेरी बात गलत है,
नहीं मानेंगी ये दुनिया उसकी जात अलग है-
अब नहीं कोई बात "खतरे की",
अब "सभी को सभी" से "खतरा" है..!!!
(:--जौन एलिया)-
जो आईनें में ही, तरह-तरह की जात ढूंढ लेते है,
वे फुरसत मिलते ही, थोङा बीमार हो लेते है ।
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नफ़रत का ठेकेदार हूँ
सियासत का धँधा करता हूँ
जब 'भगवा' होता हूँ, 'टोपी' से चिढ़ता हूँ
जब 'हरा' होता हूँ, 'तिलक' से बिफरता हूँ
नफ़रत का ठेकेदार हूँ, सियासत का धँधा करता हूँ
'इन्सान' क्या होते हैं, नहीं दिखते मुझे
मैं तो बस 'जात-पात' को ही समझता हूँ
नफ़रत का ठेकेदार हूँ, सियासत का धँधा करता हूँ
जो कभी 'धर्म का सीज़न' ऑफ हो
मैं रंग और भाषा के नाम पर भिड़ता हूँ
पूर्व वालों को 'चिंकी' - 'चीनी'
दक्षिण वालों को 'लुंगी' कहता हूँ
उत्तर वालों को 'फ़सादी' - 'आतंकवादी'
पश्चिम वालों को 'गँवार' - 'कंजूस' कहता हूँ
नफ़रत का ठेकेदार हूँ, सियासत का धँधा करता हूँ
अपनी 'विचारधारा' वाले को समझदार
सामने वाले को 'चमचा' कहता हूँ
नफ़रत का ठेकेदार हूँ, सियासत का धँधा करता हूँ
इस देश में हर कोई, भड़कना चाहता है
मैं यहीं अपना मुनाफ़े वाला धँधा करता हूँ
हमेशा सरेआम करता हूँ, भाई को भाई से लड़ाता हूँ
नफ़रत का ठेकेदार हूँ, सियासत का धँधा करता हूँ
- साकेत गर्ग-
पावला-पावलांवर जात भेटली
शिक्षकाची माया जात कळताच आटली...
जातीतला म्हणून कोणी जवळ केलं
जातीबाहेरचा म्हणून कोणी दूर ढकललं...
माझ्या आदर्शाचीही त्यांनी जात शोधली
मैत्रीच्या ओलाव्यातही कधी जात बाधली...
बसमध्ये शेजारी विचारे जात कोणती?
जात पाहून केलेली मदत ही माणुसकी कोणती...!
प्रेम करताना नव्हते जातीचे भान
लग्नाला मात्र आडवा आला जातीचा सन्मान...!
जो-तो म्हणतो जातीवाद असे अपमान
पण येथे सर्वांनाच आहे जातीचा अभिमान...
ह्याच अभिमानासाठी चालू असे हिंसाचार
माणूसपण ही एकचं जात याचा होईल का कधी साक्षात्कार...?
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"भय और त्रासदी" की एक बात अच्छी होती है,
"भय" इंसान की "जात" भुला देती है,
और "त्रासदी" इंसान को "सर्वोपरि" ना
होने का "याद" दिला देती है...!!!
:--स्तुति-
अगर तुझे पा लूं तो क्या होगा?
चार दिन की चांदनी, फिर काली रात
सच यही है दोस्तों,
ऐसी ही होती है इश्क़ की जात।-