जो आस्तीन पे खंजर, छुपाकर मिलेंगे
सामने से सब दिन, मुस्कराकर मिलेंगे
जो तुमसे जले हों , जलाने की लौ में
वो हमदर्दी का मरहम, लगाकर मिलेंगे
जो मिलने से रोका, जमाने ने हमको
सच कह रहे हैं, जहर खा कर मिलेंगे
दिन भर जताते मोहब्बत जो थकते नहीं हैं
किसी दिन मजबूरी का खर्रा बनाकर मिलेंगे
भूलेंगे चेहरे की झुर्री, माथे की सिलवट
बच्चे जो उनके, खिल - खिलाकर मिलेंगे
नेहरू ये जिन्ना सावरकर अगरकर सियासी
सियासत में मजहब, को ला कर मिलेंगे
दुश्मन से कह दो, कि कायर नहीं हम
गर मिलेंगे तो मैदां, में आकर मिलेंगे
नतीजा हो कुछ भी, है तौफीक इतनी
दुश्मन की आंखो से, आंखे मिलाकर मिलेंगे
'UV' हैं बड़े शातिर, ये कातिल तुम्हारे
मिलेंगे तो सारे सिनाकत मिटाकर मिलेंगे
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