"जबरदस्ती" अच्छी सूरत, न...न गेहूआं रंग भी चलता है। उम्र तो.. उसकी आंखें देखती ही नहीं। ताकतवर वो लोग...टूट पड़ते हैं जबतक हिम्मत और ताकत रहती है वो...ख़ुद के लिये लड़ती है एक समय बाद...शक्ति जवाब दे जाती है। आखिर...उस लिबास के चर्र की आवाज़ से रुह के भी चिथड़े हो जातें हैं....
इश्क़ में खुद को लुटाना पड़ता है, जबरजस्ती हासिल करना दीवानगी नहीं होती, आंखों में शर्म और इज्जत होनी चाहिए, महज़ जुल्म करना ही तो मर्दानगी नहीं होती..