सोचिये मत !!
इश्क कीजिए...🖋🙂-
अल्फ़ाज़ को अल्फ़ाज़ रहने दो,
दिल के ज़ज़्बात क्यों लिखते हो!
मगरूर हो,थोडी़ मगरूरी रहने दो,
दिल का दर्द क्यों लिखते हो!!
दर्द को छुपा रखो,किसी कोनें में,
चेहरें की तबस्सुम क्यों खोते हो!!
लिखोंगें जितना दिल का दर्द जहाँ,
वाह-वाही उतनी ही मिलेंगी वहाँ!
इतनी सदाकत भी अच्छी नहीं,
दिल का दर्द इतना क्यों सुनाते हो!!
वाह-वाही करने वालें अक़्सर फ़रेब कर ही जाते है,
तुम दिल के ज़ज़्बातों में अपना सुँकून क्यों खोते हो!!
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शिलशिला-ऐ-मोहब्बत में सनम तुम्हारा यूं खफा होना।
खामोश रहकर भी लबों पर हमारा ही नाम होना।।
आंखों से बहते अश्कों में गमों के मोतियों को छिपाएं।
चाहत के समंदर में डुबे किनारो का यूं अंजाम होना।।
ख्बाईशो के हर मोड़ पर पिंजरे में बंद मेरे सपनों को।
परवाज़-ऐ-आसमां देख आंखों का तेरी गुमनाम होना।।
अंधेरी रात में खोई परछाई मेरी सिमिट गई तेरी यादों में।
हुए सपनों में रूबरू मुलाकातों का यूं सरेआम होना।।
मुख़्तलिफ़ चेहरों पर मुस्कराहट की बनी लकीरों में।
तोहमत चश्मों की गबाई में आशना का इंतजाम होना।।
थक गई हूं जिन्दगी की कशमकश में उलछनो से बने रास्ते हैं।
शाम ढलते ही रातों में तेरे इश्क के जज्बातों का नीलाम होना।।-
बात ये भी बड़ी लाजवाब हो गई..
जज्बातों की स्याही बिखरी पन्नों पर,
और किताब हो गई।-
बदलते दौर के हर खेल खेलेंगे,
किसी रोज बच्चे खिलौने से नही,दिलों से खेलेंगे-
वाकई सबसे मुश्किल काम होता है समेटना,
फ़िर वो बाते हो, रिश्ते हो, बिखरा घर हो, या तुम!-
झुमका ! तेरा ,
सुकून-ए-आलम तबाह कर गया ,
नज़रों को मेरी ,
महकशी के जाम पिला गया .....!!!!!-
लिखने बैठी क़लम..... जो इश्क में तुम्हें ,
हर एहसास उभर आया..... फिर नजरों में ....!!
बहक गई सांसे मेरी.... इश्क की परछाइयों में ,
फिर गुनाहगार हो गए हम......तेरे अरमानों के.....!!-
मेरी हर सांस में बसी ....अब तेरी खुशबू आए ,
जिंदगी अब .... इन्हीं मदहोशी-यो में कट जाए ...!!
ताउम्र इन होंठों पर एहसास तेरे नाम के हो ,
तेरी महक से महकते ...अब मेरे दिन-रात हो ...!!
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ए मेरे हबीब ... शमां-ए-उल्फत में ढ़लकर चल ,
में तुझमें डूब जाऊं और तु मुझे पार लेकर चल ...-