"त्याग और समर्पण की मूरत"
माँ की ममता का कोई मोल कहाँ, वो तो सारे जग से ऊपर हैं,
माँ ही असली त्याग और समर्पण की सुंदर मूरत हैं।
नॉ महीने तक गर्भ में देती वो आश्रय अपने तन से मेरा तन बनने तक,
करती पोषित नित दिन मुझकों, अपने रक्त से सीच कर।
अपनी आँखों से दुनियां और उसके दस्तूर दिखाती हैं,
मेरे रक्त के कण कण में ममता उसकी विराजित हैं।
अपनी इच्छाओं को त्याग कर सबकी इच्छाएं पूरी वो कराती हैं,
सबका ख्याल रखती हैं वो और खुद को भूल जाती है।
घर परिवार के आगे उसको कहाँ कुछ दिखता हैं,
उनसे ही उसका सारा जीवन चलता हैं।
सबके सुख में सुखी वो होती, दुख में दुखी हो जाती हैं,
अपने सर पर ही वो घर का, सारा भार उठाती हैं।
घर परिवार को वो जोड़े रखती, संस्कारों से सींच कर,
खुद वो हैं नित दिन जलती, सारी तकलीफों को झेल कर।
ना आने देती कष्ट किसी पर, सब अपने ऊपर लेती हैं,
माँ ही असली त्याग और समर्पण की सुंदर मूरत होती हैं।
(Full poem in caption)
-Naina Arora
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