रखता हूँ बंद मुट्ठियों को हमेशा
कोई चुरा न ले लकीर तेरे नाम की-
अब यह दिल लगे तो कैसे लगे तुम्हारे बिना
इस दिल का 'दिल' भी तो तुमने चुरा रखा है
- साकेत गर्ग 'सागा'-
गोरे आरिज़ उनके ग़ुलाबी हो जाते हैं
आज भी जब हम उन्हें याद आते हैं
चुरा लेते हैं वो नज़रें ज़रा हम से अब
नज़रे चुराकर फ़िर नज़रें मिलाते हैं
- साकेत गर्ग 'सागा'-
कल रात मैने ख़्वाब देखा
आप ख़्वाब में आकर नींदे चुरा रहे हैं-
कि मैं इत्र सी महकने लगी
गुलाबों सी खिलने लगी...
ख़त के बदले तुम ही आ जाते
बात जो ख़त ने कही, तुम ही कह जाते...
हवा भी ख़त तेरा उड़ा ले गया..
ख़त में क्या लिखा, चुरा ले गया..-
चुरा कर चैन मेरा जब नहीं मिला उन्हे चैन
अब चुरा के काजल मेरा वो पाना चाहे चैन-
हे कान्हा
तुमको दे दी है नजरों से इजाज़त मैंने
मांगने से ना मिलूं तो चुरा लो मुझको-
आप ही जुदा नहीं हुए हैं हम भी जुदा हुए हैं
जिस हाल से आप गुजर रहे हैं उसी हाल में हम जी रहे हैं-