" मिनी"
छोटी सी, नन्ही सी, प्यारी सी मेरी मिनी।
कभी लगती वो गुड़ का ढेला तो कभी लगती चीनी।
इधर उधर भागकर कभी पंखे पर चढ़ जाती
कटोरी दूध की चाटकर मक्खन के लिए अड़ जाती।
चूहा उसके पीछे या वो चूहे के पीछे ख़ूब खेल खिलाती।
चुपचाप बैठे बिचारे मोती को यहां से वहां दौड़ाती।
है घर में सबकी लाडली, वो सबका मन बहलाती।
जानें कहां से छुप छुप के मेरी गोद में फिर आ जाती।
बनकर उसकी मां मैं प्यार से उसे सहलाती।
उकडू कुकड़ू बैठकर वो चैन की नींद सो जाती।
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" धुआं "
कितना अजीब होता है ये धुआं।
परिस्थिति के अनुसार रुप बदलता धुआं।
ये देह दहन का हो, या हवन कुंड का,
जलाती तो आँखें ही है धुआं।
घी की लौ से निकले तो काजल बन जाता है धुआं।
आग की लपटों से निकले तो बवंडर कहलाता है धुआं।
गरीब की झोपड़ी से निकलकर,
भूख मिटाता है धुआं।
सिगार से निकले तो, शान-ओ-शौकत,
कहलाता है धुआं।
कभी रुहानी, कभी रुमानी बन जाता है धुआं।
शख़्स का क़िरदार आता है नजर,छंट जाता है जब धुआं।
कभी मंदिर,कभी मस्जिद को महकाता है धुआं।
अंतिम यात्रा के वक़्त बेहद रुलाता है धुआं।-
ऐ गुज़रे हुए साल,
तेरा दिल से शुकराना।
हर मुश्किल दौर में भी रखा,
मेरा दिल आशिकाना।
आया है नया साल लेकर
ये ख़ूबसूरत सा नज़राना।
इंसा हूं, इंसान से,
इंसानियत से पेश आना।-
(प्यार... कैसे, कब और क्यों होता है)
प्यार हुक़ूमत से नहीं, क़ुदरत से होता है।
हर मुश्किल -ए-दौर से गुज़रकर होता है।
"किताब" लिख देने से मोहब्बत अमर नही हो जाती...
पल भर की ख़ामोशी में भी पूरा अफ़साना होता है।
प्यार एक बूंद शहद की,पूरा प्याला ज़हर का होता है।
अंधेरे में चिराग़ जलाने से 'सहर' नहीं हो जाती,
ये तो शनै शनै बड़ी ही शिद्दत से होता है।
ये बग़ावत से नहीं, नज़ाक़त से होता है।
एक लम्हे की हंसी, उम्रभर का रोना होता है।
अंत में जो होना होता है, वही होकर रहता है।-
पैगाम -ऐ-दिल पर तुने जबसे मेरा नाम लिखा है,
अल्लाह क़सम, गरजती बारिश में भी मुझे चाँद दिखा है।-
हर बंध से मुक्त होकर
मैं मुक्त संचार करना चाहता हूं।
मत रोक आज ऐ सरहद तू मुझे,
मैं आसमान में उड़ना चाहता हूं।-
अपनी तक़दीर पे ऐ बंदे तू कर नाज़ाँ,
मालिक़ ने तुझे 'इन्सानियत' के हर फ़न से नवाजा है।-
सरसों का मौसम,
मौसम इश्क़ का ले आया
ओढ़कर पीली चुनरिया,
मोहब्बत से दिल महकाया
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प्रत्यक्ष सामने पाकर तुम्हें,
मैं क्यों बन जाती हूं बूत...?
ये तुम नहीं समझोगे...!
मन ही में तमाम बातें करती हूं तुमसे मोहब्बत की,
सिर्फ इक मुलाकात से तेरी मैं क्यों हो जाती हूं चुप...?
ये तुम नहीं समझोगे...!
तुम समझ पाते मेरे चेहरे के बदलते हुए भावों को,
लज्जा से भरी, झुकी इन आंखों को,
क्यों अब तक दबाकर रखा है किताब में तेरा दिया वो फूल...?
मैं तो समझ गई, क्या तुम अब भी नहीं समझोगे...!!!-