अमन की उम्मीद छोड़ रहा हैं दिल धीरे धीरे,
लगता हैं भीतरी युद्ध चिरकाल तक चलेगा।-
"लिखते तो सब अच्छा हैं ,
कुछ सोच अनोखी कर सकूँ ।
है जो संकीर्णता घट-घट में
वो पग पग रौशन कर सकूँ ।
वर्ण का यह भेद
एक वर्ण से जलकर मिट जाए ।
है जो अस्पृश्यता का काला साया ।
एक बुलंद आवाज में घुटकर मर जाए ।
है जो खोखली बुनियाद ऊँच-नीच...
इसी वक्त टूटकर गिर जाए ।
जो मानवता कुछ जगा सके ,
बस वो हाथ नींव सा
चिरकाल तक जम जाए ।
जिससे मेरी "माँ भारती "हँस सके ,
वो आलम आज यहाँ पर छा जाये ।
लिखना मेरा तब सफल होगा ।
ऐ 'आकृति' जहन-जहन ये कह जाए ॥"
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पैसा, श्रीमंती, यश, यशस्वी असणे
.... या गोष्टी कधीच चिरकाल नसतात...
ज्यांना या गोष्टींची सवय लागते,
त्यांच्या छाताडावर पाय ठेवून,
नियती त्यांचा हिशेब चुकता करते...
म्हणून ... कधी कधी माणसाने
वेळ निघून जाण्यापूर्वी सावध व्हावे...
©️ गजानन तुपे☆☆Ğàjåňáń☆☆
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वक्त के साथ मिट जाते हैं
मोह पाश से बंधे हुए
चिरकाल से,
हृदय में रखे अवशेष
और बाकी रह जाता है
आंखों का पत्थर होना...-
हे भरतवंशियों की संतानों!
भारत की गरिमा को जानो
हिंदी है भारत की भाषा
तुम अब इसका गौरव मानो
देवनागरी ने रच डाले
कितने वेद औ काव्यखण्ड
मातृभाषा में ही उन्नति है
चिरकाल से महिमा है अखण्ड।-
खत्म हुआ चिरकाल का,अब आशीष महान,,
त्याग उदासी को सखे,कर सबका सम्मान ।।-
आप खुद को सुंदर समझते हैं तो आपके विचारों का सुंदर होना और भी जरूरी हो जाता है क्योंकि लोग आपके सुंदर तन को देखकर आपके सुंदर मन की अपेक्षा करते हैं और अगर आप खुद को सुंदर नहीं समझते तो अपने विचारों को सुंदर बनाएं क्योंकि शरीर की सुंदरता उम्र बढ़ने के साथ क्षीण होती जाती है और मरते ही नष्ट हो जाती है लेकिन अपने सुंदर विचारों में आप चिरकाल तक लोगों के दिलों में जिंदा रखते हैं
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उनके प्रेम में स्नेह था, अनुराग था,
मेरे प्रेम में सिर्फ स्वार्थ था, वासना थी।
मेरा प्रेम मर्त्य था, नश्वर था,
मगर उन्हें ना जाने क्यूं अमर प्रेम करना था।
चिरकाल (forever) वाला
उनकी चाहत ही असंभव की थी,
मैं औसत दर्जे का आदमी करता तो क्या करता?
कितनी भिन्न-भिन्न चाहत थी हमारी
फिर अंतर्द्वद ना होता तो और क्या होता!
#बृजेश
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प्रेम पर..
किसी का नियंत्रण नहीं रहता,
प्रेम तो..
स्वयं चिरकाल से अनियंत्रित है...SS-