Paid Content
-
मैंने शहर को देखा
और मैं मुस्कराया
वहां कोई कैसे रह सकता है
यह जानने मैं गया
और वापस न आया-
बेरंग नज़र आती है मुझे ये दुनिया सारी
मैं चश्मा पहन कर ही घर से निकल ता हूँ-
माना कि कभी बिसरा दोगे मुझे,
अनजाने ही सही संभाल भी ना पाओ,
शायद टूट जाऊं या रह जाऊं कहीं,
कभी छुपा लोगे या दूर भी चले जाओ,
लेकिन; आखिरकार साथ मेरे...
मेरी ही नज़र से दुनिया देखोगे,
मै ढलती उम्र का वो चश्मा हूं।-
Ye mazhab ka chasma utar kar dekho
Insaaniyat nazar aayegi
Koi bhukha hai to koi pyasha
Bhedbhav se bhari hai abhilasha
Ye andhepan ke khayalat ko pheko
Zara chasma utar kar dekho
-
वो बोली कि हम छोड़ आये हैं चश्मा उनके घर पर।
हम बोले अब उनकी जरूरत नहीं
हमारे चश्म भी तो वहीं ठहर गये हैं।-
मेरे अनुभव है ख्वाब तेरा
जो सोच तेरी, विश्वास मेरा
जिस अम्बर में तू उडता है
वहां कब से है निवास मेरा
जिस पुस्तक को तू पढता है
उसमे है लिखा इतिहास मेरा
कुछ कर दिखला दे दुनिया को
ना लोग करे उपहास तेरा...
जो सोच तेरी, विश्वास मेरा
मेरे अनुभव है ख्वाब तेरा-