कुछ बिखरे पन्नों पर, मैंने सिफारिश लिख दी है
मिलने को क़लब बेचैन था, मैंने गुज़ारिश लिख दी है
उन नज़रो से कह दो, आँखें दो-चार करना है
रूबरू हो चश्म-ए-यार मेरे,मैंने ख्वाहिश लिख दी है
ताबीर-ए-मुस्तक़बिल हैं, उनकी यादें दरिया है
लबालब हो कर, मैंने समुन्दर की पैमाईस लिख दी है
वो ज़ुल्फ़ों के आगोश में हर पल रहना है मुझको
वो मक्खन की स्याही से, मैंने फरमाइश लिख दी है
तुम्हारे हर तर्ज़ में सबनम की सोखीयाँ तो है
मेयार-ए-मोहब्बत में मैंने आज़माइश लिख दी है
ला-हासिल ख्वाब मयस्सर हो जायेंगे इक दिन
खुदा को अर्ज़ीयों में, मैंने तमाम नुमाइश लिख दी है
ये रिवायत, ये रिफाक़त ये शाइस्तगी ये नज़ाकत
हर अदा हमनवा हो जाने की ,मैंने गुंज़ाईस लिख दी है
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