मंजिल जितनी दूर तलक़ है जाएंगे
मेहनत ही है जरिया तो गल जाएंगे
आज हमारे हाथ तो बेशक खाली हैं
इकदिन सौरभ , ये मीठे फल पाएंगे
लोग है कहते इसमें केवल जलना है
तो मानो ए यार कि हम जल जाएंगे
जिसकी खातिर छूट रही है ये दुनिया
हम अब आपना भी वैसा कल लाएंगे-
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स्वप्न में थी कभी कलपना जो करी, प्रभू ने वैसा ही मीत दिया है सखी;
है वही सौम्यता ,है वही ओजता ,वैसा गुस्सा भी है , है मधुर प्रणयता,
मैने सोचा था जो , बिल्कुल वैसा है वो, मेरा जीवन है उनपे बलिहारी,
मेरे जीवन का है वो उजियारा, बिन उनके ये जीवन कुछ भी नही,
स्वप्न मे थी ........
हर पथ पर मेरे साथ वो है चला, दुविधा कैसी भी हो साथ मेरे रहा,
खुद रो कर भी मुझको दिलासा दिया......
है यही कामना , वो मेरा रहे
मै उनकी वामांगी बन उम्र जीयूँ...
स्वप्न मे थी ........
मै रूठूँ कभी उससे बोलूँ नही, नैन बाते करे अधर चुप हो जहाँ,
वो आके कहें तुझे क्या है हुआ,
फिर आके मनाए सीने से लगाए, गुस्से मे भी प्यार निखर सा जाए,
स्वप्न मे थी ........
जिंदगी यूँ कटे यह सफर यूँ ढले , साथ चलते हुए वक्त पता ना चले ,
आखिरी मोड पर हाथ मैं जोड़ कर मागूँ माफी सभी जो करी गलतियां,
गोद उनकी मिले सांस जब यह रुके घेरा बाहों का उनके मुझे बस ढके
हर जन्म में मुझे साथ इनका मिले , मेरी बस प्रभू से है यह प्रार्थना ,
स्वप्न में थी कभी कलपना जो करी, प्रभू ने वैसा ही मीत दिया है सखी।।।।।-
चार दिन की जिंदगी के चार दिन
हैं नहीं तारीख में .... ये चार दिन
तुमको जितना काम है फुरसत से कर लो
हमको भी फुरसत में नहीं हैं चार दिन-
लिखने वाले तो दो पन्नो में लिख देते हैं कहानी साहब
जिसपे गुजरी है वो इक रात , जानता वो है ......
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इश्क़ में जितना मिला तुमको तुम्हारा ही मिला
मुझे कुछ ना भी मिलकर जो मिला प्यारा मिला-
आओ मिलकर ,साथ हम तुम , रोक दें अंजाम को
इन हवाओं में भरें , वातास कर दे नाम को
इन हवाओं में भरें, मदहोशियां इतनी कि अब
देखकर अपना प्रणय , सब छोड़ दे उस जाम को-
टूटती गिरती मीनारें हैं हमारे ख्वाब में
ढूँढता हूँ एक तागा राज बुनने के लिए
लोग हैं आवाज करते आज उस ही मोड़ पर
मैं जहाँ पर मौन हूँ आवाज सुनने के लिए-