मस्जिदों के मनारों ने देखा उन्हें
मंदिरों के किवाड़ों ने देखा उन्हें
मय-कदों की दराड़ों ने देखा उन्हें
इक चमेली के मंडवे-तले
मय-कदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर
दो बदन
प्यार की आग में जल गए-
इन दिनों खुशबू मेरे साथ नहीं होती
समझो चमेली से अपनी बात नहीं होती
इधर देखो सूरजमुखी-सूरजमुखी हुई पड़ी है
एक शाम के बाद मेरे गाँव में रात नहीं होती
एक पौधा सूख गया खारे पानी से
किसने कहा इन आँखों से बरसात नहीं होती-
खुली किताब-
आज फिर महका
सूखा गुलाब
उसकी भेँट -
चमेली की खुशबू
हर पृष्ठ में
रोती गुड़िया
किताबों में खो गयी
नन्ही परियाँ-
अइले सावन महिनवा हो रामा....कुँहुके कोइलिया।
बदरा घिर-घिर बरसे लागे,
शोर मचाये पपिहरा हो रामा......कुँहुके कोइलिया।
भिनसार चमेली महके लागे,
बेला गमके अधिरतिया हो रामा...कुँहुके कोइलिया।
निमिया की डारी झूला लागे,
कजरी रंग जमाये हो रामा.......कुँहुके कोइलिया।
सब हरषाये सावन महिनवा,
विरहिन मन तड़पाये हो रामा....कुँहुके कोइलिया।
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2122 1212 22
है पुरानी मेरी सहेली वो
लग रही क्यों मुझे अकेली वो।1
रहने वाले उदास हैं उसमें
जगजमगाती रही हवेली वो।2
क्यों है खिड़की से झाँकती लड़की
मुझको लगती है इक पहेली वो।3
देखकर बेटी खिल गया चेहरा
घर के आँगन की है चमेली वो।4
जिससे छूना है आसमान "'रिया"
सज गई ख़्वाब की हथेली वो।5-