Sanjeev Sharma  
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Joined 28 June 2019


Joined 28 June 2019
20 MAR AT 15:45

करवट बदल के सोए वो
ख्वाबो मे शायद खोए वो
तकिए पे दस्तक अश्क की
कुछ ख्वाब शायद रोए हों
लव से ना निकली आह भी
खामोश किसकी चाह थी
ख्वाबो मे शायद खोए वो
करवट बदल के सोए वो

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18 MAR AT 13:42

मुश्किल है सफर कहती है डगर
खोया था जिसे आ जाए नजर
मिल जाए कभी नजरो से नजर

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21 FEB AT 0:11

आंखो से आज कल ख्वाब यूं गिरते हैं
खुदकशी है सनम दिन मे जो फिरते हैं

खोलकर खिडकियां देखा करेगें तुम्हे
जुलफो के साए मे बुनते हो सपने सुने

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18 FEB AT 23:20

मिजाज मे बेरूखी मौसम का अन्दाज
रिसतो मे तलखियां कया कहें जनाब

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18 FEB AT 14:51

मै भी तन्हा रहा वो भी तन्हा रहे
कया मिलेगे कभी सोचते ही रहे
दर्द होता है कया दोस्तो ये सुने

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17 FEB AT 14:50

हुई चंद मुलाकात अक्सर साम ढलते
हैरान रात ख़यालात पलकों मे पलते
मजबूर हैं कुछ मगरूर ना हो शायद
बदलते रास्ता अक्सर दिया जलते

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7 FEB AT 15:44

कोन सुनेगा बात हमारी सोच रही है एक बेचारी
प्रेम अगन मे झुलस रही है बुझे प्यास कैसे लाचारी
मेघ गगन मे गरज रहा है
नही धरा पर बरस रहा है

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7 FEB AT 15:21

कांटो से हिफाजत दामन निखर गया
फूल है गुलाब का मिलकर उबर गया
अधरो को यूं चूम के खुशबू निगल गया
आवारगी का आलम भवरा किधर गया

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6 FEB AT 14:14

चलो आज बैठें समन्दर किनारे
घने खूबसूरत सुने हैं नजारे
लहरों से मिलकर कोई बात होगी
जमाने से हटकर मुलाकात होगी
चलो आज बैठे समन्दर किनारे
ना रुसवाई हमसे ना शिकवा गिला ही
समन्दर की लहरें उठी खिलखिला दी
हवाओ ने छेड़ है यारो तराना
ललचा रही कया करूं मै वहाना
आंचल तो लहरो ने ऐसे बिछाया
समझ भी ना पाया मुझे क्यूं सुलाया
गर्म सांस मेरी वो लहरे जवां थी
लिए जा रही मुझको जाने कहां थी
अजब यारो किस्सा प्यारा समा था
नही कोई लहरो के उस दरमिया था
चलो आज बैठे समन्दर किनारे

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5 FEB AT 15:47

ठहरा दहलीज पर इक समा मिल गया
प्यार हद से भी ज्यादा किया कब गिला
खोया मुद्दत से आखिर जहां मिल गया
रूह बैचेन थी अब शकूं मिल गया
रोज आते रहे रोज जाते रहे
रहते बैचेन पल मुस्कराते रहे
कया कहें वक्त से सरमाते रहे
खोया मुद्दत से आखिर जहां मिल गया
प्यार हद से भी ज्यादा किया कब गिला
ठहरा दहलीज पर इक समा मिल गया



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