ठहर गया वक्त मै भी उसी दुकान पर
ना ढल सका दिन ना रात किसी मुकाम पर-
करते हैं ख्वाब अक्सर मुझ ही से चर्चा
करते कुछ नही दिखाई देता है खर्चा
इक हसीन साम का सवाल था आखिर
दिन मे मिले तो दिखा दू पर्चा-
हवा ही तो है जो घोल देती बाते अक्सर फिजाओं मे
सहम जाते पल आज हो जाता कल और जिन्दगी खिजांओ मे
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तारे नजर आए दिन मे जमीन पर
चांदनी उतर आई लेकर हसीन पर
सपनो के समन्दर मे यू डूब रात भर
लहरो से खेलता मन ढूंढा रहा है घर
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खफा है रात सोने नही देती
खुद ही से करनी है बात होने नही देती
चोंक जाती है बिन बात ना जाने कयू
भिगोने थे कुछ ख्वाब भिगोने नही देती
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चाहत को अपनी ना करना दफन
ख्वाबो से कह दो ना ओढे कफन
ख्यालो से रिश्ता है नाता पुराना
कोई बात करना गले से लगाना
ख्वाबो ख्यालो का प्यारा चमन
चाहत को अपनी ना करना दफन
सुनसान गलियो का है कायदा
गुजरे कोई ना बिना फायदा
महरूम होकर गुले शाख से
पत्तो की भांति नही ताकते
ख्वाबो ख्यालो का प्यारा चमन
चाहत को अपनी ना करना दफन
ख्वाबो से कह दो ना ओढे कफन
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Dear didi
It's not fair before few minutes a quote 19 lines on चाहत
Was written by me unfortunately you dismissed why-
प्यासा हो दिन भूखी हो रात वैसे
फुर्सत मे दिन रात होते है कहां
सुलगते जज्बात हसीं खयालात कैसे
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खामोश चेहरे पे होते है हजारो पहरे
दफ्न कुछ ख्वाब जख्म कही गहरे
खो जाना खुद ही मे है कहां आसां
ढूँढते है राह अब कहां ठहरे-