चलो आज बैठें समन्दर किनारे
घने खूबसूरत सुने हैं नजारे
लहरों से मिलकर कोई बात होगी
जमाने से हटकर मुलाकात होगी
चलो आज बैठे समन्दर किनारे
ना रुसवाई हमसे ना शिकवा गिला ही
समन्दर की लहरें उठी खिलखिला दी
हवाओ ने छेड़ है यारो तराना
ललचा रही कया करूं मै वहाना
आंचल तो लहरो ने ऐसे बिछाया
समझ भी ना पाया मुझे क्यूं सुलाया
गर्म सांस मेरी वो लहरे जवां थी
लिए जा रही मुझको जाने कहां थी
अजब यारो किस्सा प्यारा समा था
नही कोई लहरो के उस दरमिया था
चलो आज बैठे समन्दर किनारे
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