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कहाँ होगा कोई मुझसा घुमक्कड़
घूमता रहता हूँ सुबह से शाम तक
लोगों की फेसबुक वॉल पर
या फिर वाट्सएप्प पर
इस ग्रुप से उस ग्रुप में।
दिमाग के थकने तक
चलती रहती है उंगली।-
" घुमक्कड़ सा हो चला है मन मेरा आजकल,
तुम्हारे मन के इर्द-गिर्द मुझे मिलता है अक्सर ।"-
क्या लेकर आये थे क्या लेकर जायेंगे
खुशियां बहुत बटोर ली, अब खुशियां यहां लुटायेंगे
ना हो कोई बड़ाई ना हो सिर चढ़ाई
सुर्खियां बहुत बटोर ली, तारीफें भी न अब लुभायेंगे
ना हो कोई आगे और ना ही हो कोई पीछे
इक ऐसा जहां बनाएंगे, जिसमें ना हम समायेंगे
फिक्र हम करें क्या परवाह नहीं हमारी
छोड़ सकते नहीं हैं कुछ को, कुछ हमको ना छोड़ पायेंगे-
घुम्मकड़ होती है हमारी बातें
कभी थोड़ा यहाँ तो कभी वहाँ
पर अकड़ होती महज चंद सत्य का
जो जकड़ यादों को,रखती सदा जवां!-
जीवन इक यात्रा है
हम सब मुसाफिर
रुकना मना है
तो, घूमो जी भर
आंनद करो हासिल ।
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