लगता है उनकी गुफ्तगु की महफ़िल
कही और लग गई है और हम यहां उनके
इंतज़र में शामे गुजार रहे हैं....💔-
रातभर भीगता रहा तकिया आंखों की नमी से,
कोई क्यों कर यूँ इतना बेहिसाब याद आता है?
दरवाजे पर हर दस्तक पर दिल धड़क जाता है,
कोई क्यों किसी का यूँ बेसबब इंतजार रहता हैं?
इबादत में सर झुकता है रब को सजदा के लिए,
कोई क्यों ख़ुदा की जगह वो ही नजर आता है?
मिलने से पहले सोचते है करेंगें बेशुमार यूँ गुफ्तगू,
कोई क्यों कर रूबरु होते खामोश हुआ जाता है?
तकाजा है कि जियारत करें तो कुछ फ़ज़ल मिले,
कोई क्यों उसे उसका आगोश ही हज लगता है?
हर पीर, नजूमी का फरमान है कि कोई चारा करें,
कोई क्यों कर उसकी बांहे मन्नत का धागा लगता है?
खबर है उसे, नहीं हो पाएंगे एक इस जिंदगानी में,
कोई क्यों कर "राज" नाउम्मीद में उम्मीद रखता है? Mr Kashish-
महसूस करना है तो अपनी आँखें बंद करो
और उन पलो को याद करो जो साथ मे बिताये थे
स्याही पन्नो पे क्यों बिखेरना उससे क्या होगा..!!
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भर के नशीली आँखों में छलकते मय के प्याले,
मोहब्बत में वो गुस्ताखियां हज़ार करता रहा।।-
" मैं "
मस्तियों की मौज में था जो,
अब हस्तियों की खोज में हूं...
बातों की गुफ्तगू में था जो,
अब रातों की जुस्तजू में हूं...
हसरतों का आसमां था जो,
अब हकीक़तो की जमीन हूं...-
☹️
बातें करते-करते उसका यूं चले जाना ,
"सुशी" मुझे कभी भी रास नहीं आता ।-
कभी टूटा नहीं दिल से तेरी याद का रिश्ता
गुफ्तगू हो न हो ख्याल तेरा ही रहता है-
अब होती नही उनसे गुफ्तगू देर तक हमारी,
बहुत दिनों से....हमारा इतवार नही आया।-
गुफ्तगू यूं हुई सुबह की "सुशील",
रात के शिकवे में वो चाय पिलाना भूल गई।-