रातभर भीगता रहा तकिया आंखों की नमी से,
कोई क्यों कर यूँ इतना बेहिसाब याद आता है?
दरवाजे पर हर दस्तक पर दिल धड़क जाता है,
कोई क्यों किसी का यूँ बेसबब इंतजार रहता हैं?
इबादत में सर झुकता है रब को सजदा के लिए,
कोई क्यों ख़ुदा की जगह वो ही नजर आता है?
मिलने से पहले सोचते है करेंगें बेशुमार यूँ गुफ्तगू,
कोई क्यों कर रूबरु होते खामोश हुआ जाता है?
तकाजा है कि जियारत करें तो कुछ फ़ज़ल मिले,
कोई क्यों उसे उसका आगोश ही हज लगता है?
हर पीर, नजूमी का फरमान है कि कोई चारा करें,
कोई क्यों कर उसकी बांहे मन्नत का धागा लगता है?
खबर है उसे, नहीं हो पाएंगे एक इस जिंदगानी में,
कोई क्यों कर "राज" नाउम्मीद में उम्मीद रखता है? Mr Kashish
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