तारे चांद के साथ, जलते है,,
इश्क़ में, जज़्बात जलते हैं!!
जब छूता हूं,उस चांद को मैं,,
मेरे ना पाक, हाथ जलते है!!
हटाओ दो तुम,रेशमी विस्तर,,
इन में मेरे, ख़्वाब जलते हैं!!
मेरे कुछ चिराग़ नहीं जलते,,
उसके सब, गुलाब चलते हैं!!
के दरिया में है,परछाई कोई,,
पानी में,आफताब जलते हैं!!
तहफे नहीं चाहिए,हमे तुमसे,,
निशानी के,निशान जलते है!!
इश्क़ में और कुछ नहीं दोस्त,,
तस्वीरों के, मक़ान जलते हैं!!
एक शख्स से ऐसी मोहब्बत,,
हमसे सारे, इंसान जलते हैं!!
ससे जलते हैं,वा वफ़ा राहुल,,
हमसे तो,दो ज़हान,जलते हैं!!
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बिखरती ज़ुल्फ़ की परछाइयाँ मुझे दे दो !!
तुम अपने शाम की तन्हाईयाँ मुझे दे दो !!
ये लहर लहर बदन टूट ही न जाये कहीं !!
खुमार-इ-हुस्न की अंगड़ाइयाँ मुझे दे दो !!
मैं तुमको याद करूँ और तुम चले आओ !!
मोहब्बतों की ये सच्चाइयाँ मुझे दे दो !!
मैं डूब जाऊँ तुम्हारी उदास आँखों में !!
तुम अपने दर्द की गहराइयाँ मुझे दे दो !!-
एक आँसू बोल पड़ा किस की खातिर इतना रोते हो !!
क्या गम है तुझकों कि सारी रात जागते रहते हो !!
किसी बात की फिक्र हैं तुम्हें क्यों इतना डरते हो !!
क्यों तन्हा क्यों बेचैन क्यों इतना खामोश रहते हो !!
हो कोई गम तो बांट लो मुझसे अपना समझ कर !!
क्यों इस रंगीन दुनियां में तुम यूँ सुने-सुने से रहते हो !!
रखते हो सबकों खुश फिर क्यों ख़ुद दुःखी रहते हो !!
ऐसी क्या बात लगी है दिल पर जो ख़ुद तन्हा सहते हो !!
क्या कहूँ ए - आँसू अब सब कुछ गवारा लगता है !!
जो सब था कभी अपना अब सब पराया लगता है !!
दिखावे की हे ये दुनियां यहां सब फ़रेब के रिश्ते है !!
जो रोशन करता है सबकों उसी से ये लोग जलते है !!
कर बैठा मैं भी ये गुनाह सबकों खुशियां बांट दी !!
मैंने तो अपनी ज़िंदगी इन्ही की खुशियों में काट दी !!-
नित जीवन के संघर्षों से !!
जब टूट चुका हो अंतर्मन !!
तब सुख के मिले समंदर का !!
रह जाता कोई अर्थ नहीं !!
जब फसल सूख कर जल के बिन !!
तिनका तिनका बन गिर जाए !!
तब होने वाली वर्षा का !!
रह जाता कोई अर्थ नहीं !!
संबंध कोई भी हो लेकिन !!
यदि दुःख मे साथ ना दे अपना !!
फिर सुख में उन संबंधों का !!
रह जाता कोई अर्थ नहीं !!
मन कटुवाणी से आहत हो !!
हृदय अंदर तक छलनी हो जाय !!
फिर बाद कहे प्रिय वचनों का !!
रह जाता कोई अर्थ नहीं !!-
कशमकश में फसी यूँ जिंदगानी है !!
जिंदगी जैसे अधूरी इक कहानी है !!
डूबो दिया हैं नफरतों के दरिया में !!
और हमें सभी से वफ़ा निभानी है !!
जानता हूँ वफ़ा इश्क़ रश्मि बातें हैं !!
फिर भी लुटने की आदत पुरानी है !!
जिसमें गर ना हो सबक-ए-ठोकर !!
मेरी मानो बेकार हर वो जवानी है !!
कितने दफन हुए इश्क़ की कब्र में !!
बयां ये सबक खुदा की जुबानी है !!
अब सिर्फ वहशी इश्क़ का चलन है !!
वफ़ा से खेलना फितरत ये इंसानी है !!-
मेरे होठों तक कोई बे-पर्दों में आ जाता हैं
रातें भी पहचानें जो ख्वाबों में आ जाता हैं
मेरा सारा तन-मन उसका बेला सा महके हैं
धीरे-धीरे चुपके से वो मेरे साँसों में आ जाता हैं
उस मोती के गहनों सी यादें जो आ जाता हैं
वो लेकर बरखा बूंदें जो यादों में आ जाता हैं
मेरे वो अल्फाजों का सिकंदर नादान नहीं हैं
बिन लाये जो मेरी हर बातों में आ जाता हैं
उसने मन मेरा पहली बार में ही मोहें लिए हैं
पीला-पीला कुमकुम जो सरसों में आ जाता हैं
दिल की बात वो पक्की जो मेरा यार ने कहीं हैं
मेरे सारे ग़म सुलझाने जो लाखों में आ जाता हैं
ओझल ना होने दूँ अपने नैनों में उसको मैं भर लूं
खुश्बू बनकर गुलशन जो तोह्फ़ों में आ जाता हैं-
अपने कीमती अश्क जाया कर दिए उसकी आरजू में
मैं तो भूल ही गया उसका दिल नहीं पसीजने वाला है
फासले कम ना कर सका "राहुल" उस माशूक से
हम बेखबर थे कि वह मुझसे बहुत दूर जाने वाला है
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यहां लोगों को रिश्तों की कदर नहीं हैं
इसलिए अपने होकर भी अपने नहीं हैं-
रब से कभी नही मांगा तुम्हे लेकिन इशारा तुम्हीं पर हैं
मैंने नाम बेशक नही लिया मगर पुकारा तुम्हीं को हैं-