ना रात मखमली हो और,
ना सुबह कोई चमकीली हो।
बस हो एक शाम ऐसी,
जिसमें भूख को रोटी मिली हो।
ना ज़िन्दगी कोई रंगीली हो,
ना क़िस्मत की आवाज़ सुरीली हो,
बस हो इंसानियत और जज़्बा,
जिसमें जरूरतों की जेब सिली हो।
ना खुशबुओं की कोई डली हो,
ना राहों में बिछी कोई रंगोली हो,
बस हो एक दुनिया ऐसी,
जिसमें किसी की आंख ना गीली हो।
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