जहाँ से चले थे वहीं आ गए, बेगानों के बीच हम अपनों को पा गए।
किसी को बताया मत करो ख़ुशखबरी, घर बसा नहीं लुटेरे आ गए।
कल महफ़िल में बैठे थे उनको देखकर यकायक रुआँसा हो गए थे।
कैसे-कैसे कर के ख़ुद को संभाला और हम अपने आँसू छिपा गए।
बड़ी बुरी आदत है हमारी देखो ना मेरे दोस्तों, बर्दाश्त नहीं होती हैं।
ज़रा सी ख़ुशी मिली नहीं कि अपने से जलनेवालों को को बता गए।
एक नहीं कई बार हज़ार बार तौबा किया है इस इश्क़ की बीमारी से।
पर एक बार क्या देखा उसको एक बार फिर से हम दिल लगा गए।
उफ्फ, उनकी साफ़गोई का क्या ही कहना तुम ही देखो ओ मेरे यारों।
हम तो बस उनके आशिक़ बने और कमबख़्त "बे मौत ही मर गए"।
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