Hasit Bhatt  
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Joined 30 August 2016


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18 HOURS AGO

दीवाली में जगमगा रहा शहर
कह रहा था घर के आंगन को,
घर से निकला था ये दिया भी
रोशन करने अपने ही घर को

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26 OCT AT 19:44

ज़मीन से निकले पेड़ का पत्ता,
वापिस ज़मीन में घुल जाता है ।

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20 APR AT 14:19

शायद टूटे ख्वाबों को हकीकत से जोड़ा जा सकता है
कुछ नियम तोड़ने के लिए है, उन्हें मोड़ा जा सकता है
सिर्फ पाठशाला की पढ़ाई जिंदगी में काम कैसे आएगी
किताब के कम ज़रूरी पन्नों को छोड़ा जा सकता है

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5 APR AT 8:13

किसी कोने में मेरे नाम का दिया अब भी जलता होगा
धूप तुझे मेरा छांव के पास जाना कुछ तो खल्ता होगा
कमबख्त, तुम्हारे दिल की दिवार कुछ कच्ची निकली
कोई नहीं, कोई तो होगा, जिसे वो भी चलता होगा

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3 APR AT 12:36

कभी घर हुआ करता था, खंडहर लगता है अब
अनजाना सा महोल्ला था जो, घर लगता है अब
आगाज और अंत से हो गया हूं इतना अवगत
अपनी कहानी जानने से भी डर लगता है अब

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1 APR AT 13:43

कहते है जरुरत बनना जरूरी नहीं होता
पैसा क्या होता अगर सीमित नहीं होता
सोचता हूं अमृत की कीमत क्या रह जाती
अगर आदम मरने से भयभीत नहीं होता

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31 MAR AT 5:10

किसी के खुद टूट जाने में गलती उतनी होती है
जितनी होती ही गुब्बारे की उसके फूट जाने में

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30 MAR AT 12:56

घट रहा है नूर शायद और बढ़ रही है गहराइयां,
छलक गई है आंखे अगर, बहाव सोच लीजिए

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20 MAR AT 13:54

जैसे तन्हाई में हुजूम ढूंढ रहा हूं
गहरे पानी में जुनून ढूंढ रहा हूं
सुना था किस्मत कभी तो बदलेगी
बड़ी सब्र से मैं सुकून ढूंढ रहा हूं

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20 MAR AT 13:49

वो पूछते है हमारा तुम से ऐसा क्या वास्ता था
हम तो समझे रूह से रूह तक का रास्ता था

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