Hasit Bhatt  
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Joined 30 August 2016


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20 MAR AT 13:54

जैसे तन्हाई में हुजूम ढूंढ रहा हूं
गहरे पानी में जुनून ढूंढ रहा हूं
सुना था किस्मत कभी तो बदलेगी
बड़ी सब्र से मैं सुकून ढूंढ रहा हूं

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20 MAR AT 13:49

वो पूछते है हमारा तुम से ऐसा क्या वास्ता था
हम तो समझे रूह से रूह तक का रास्ता था

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18 MAR AT 10:11

किस्मत छोड़ जाती है या निभाती है
रखो संग तुम पुरुषार्थ, धैर्य का ज़ोर

नर्म कागज़ भी बना था कोई सख्त पेड़ से
कागज़ की नाव का भी आता है इक दौर

खामोशी से निकल जाना तुम मसलों से
देखना, लोग रह जाएंगे मचाते हुए शोर

वक्त की फितरत है बदलते रहना तो
यकीनन कभी तो बोलेंगे तुम्हारे चकोर

तकदीर तुम्हारी लो तुम अपने हाथों में
खुद को कभी मत समझो तुम कमज़ोर

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18 MAR AT 5:09

पहले ख्वाहिश थी कि समझ पाए मुझे लोग
मगर अब मैं किसी का भी बुरा नही चाहता

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18 MAR AT 4:33

हमारी नींद चुराने की बात करते हो आप
हुजूर, झोपड़ी में डाका नहीं डाला करते

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18 MAR AT 4:27

शायद यह खुशनसीबी है, गुमनाम हूं
सिर्फ अपने पसंदीदा लोगों में नाम हूं

लोग जानेंगे अगर, पहचान पाएंगे नहीं
मिलेंगे खुशी से, मगर काम आएंगे नहीं

इक आवाम होगी जो जलती होगी
इस खोज में कि कब गलती होगी

हां, सपने सब सच अपने हो पाएंगे
ख्वाब हम भी किसी के बन जाएंगे

अभी अपनों के लिए वक्त बेशुमार है
आज, नहीं कोई भी हमसे बेजार है

जितनों का हूं, उन का वफादार हूं
अपनी छोटी सी बस्ती का मैं यार हूं

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12 MAR AT 14:28

चाहत-ए-इल्म ने कुचल डाली है मासूमियत मेरी
खुद को पाने के सफर में खुद को कुछ ऐसा खोया हूं

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3 MAR AT 16:37

मुंह पर सब सच बताने वाले लोग
डांट कर भी प्यार जताने वाले लोग

टूटते ही बदल देती इस दुनिया में
चीज़ों को जोड़कर बचाने वाले लोग

बैठे हो चाहे खुद कितने भी परेशान
घर तक का रास्ता दिखाने वाले लोग

गुमसुम किसी को देख ले जो अगर
कुछ भी कर उन्हें हंसाने वाले लोग

दिख जाए भूखा कोई भी जो कहीं
निवाला खुद का खिलाने वाले लोग

रिश्तों में दरार रोकने के खातिर
खुद झुकने और मनाने वाले लोग

चाहे मिल रहे हो पहली बार लेकिन
सच्चे दिल से दिल लगाने वाले लोग

खुद के ही दिल से छिपती इस बस्ती में
बात निजी भी खुलकर बताने वाले लोग

खुद पर भरोसा खो चुके हुए लोगों को
खुदा पर भी भरोसा दिलाने वाले लोग

खोए जा रहे है हम, हो सके तो बचा लेना

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19 FEB AT 0:53

होठ फड़फड़ाते रहे मगर कहना ज़रूरी था
दबी उस बुंद का आंख से बहना ज़रूरी था

बहुत उम्मीद लगाए बैठे थे ज़माने से बचपन में
असलियत जानने घर से निकलना ज़रूरी था

ऐसा नहीं है कि हार अब रुला नहीं पाती मुझे
जानता हूं मूरत का हर घाव सहना ज़रूरी था

गम की गैर मौजूदगी में खुशी मायूस रहती थी
गनीमत है उन हालातों का बदलना ज़रूरी था

खुद को दरिया-ए-अय्याम समझ रहा था हसित
मिट्टी के ज़र्फ का आइने से मिलना ज़रूरी था

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18 FEB AT 18:14

मेरे सर से कंधा मिलाने का क्या लोगे
हाथों से बाल खिलाने का क्या लोगे

खुली झुल्फे मेरी सिर्फ तुम्हारे लिए है
उन्हें फूलों से सजाने का क्या लोगे

सुना है कोई जादू है तुम्हारे हाथों में
चेहरे पर उनको चलाने का क्या लोगे

टूटा भी अगर तुम जोड़ लेते हो अगर
मेरे दिल से दिल लगाने का क्या लोगे

शायद प्यास बुझ न पाएगी मेरी मगर
लबों से लबों को मिलाने का क्या लोगे

ख़्वाब मेरे है, मगर कैद हम दोनों उसमें
मेरे सपनों से बाहर जाने का क्या लोगे

मेरे होने तक से अनजान हो तुम शायद
इक बार सही, गले लगाने का क्या लोगे

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