शायद टूटे ख्वाबों को हकीकत से जोड़ा जा सकता है
कुछ नियम तोड़ने के लिए है, उन्हें मोड़ा जा सकता है
सिर्फ पाठशाला की पढ़ाई जिंदगी में काम कैसे आएगी
किताब के कम ज़रूरी पन्नों को छोड़ा जा सकता है-
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किसी कोने में मेरे नाम का दिया अब भी जलता होगा
धूप तुझे मेरा छांव के पास जाना कुछ तो खल्ता होगा
कमबख्त, तुम्हारे दिल की दिवार कुछ कच्ची निकली
कोई नहीं, कोई तो होगा, जिसे वो भी चलता होगा-
कभी घर हुआ करता था, खंडहर लगता है अब
अनजाना सा महोल्ला था जो, घर लगता है अब
आगाज और अंत से हो गया हूं इतना अवगत
अपनी कहानी जानने से भी डर लगता है अब-
कहते है जरुरत बनना जरूरी नहीं होता
पैसा क्या होता अगर सीमित नहीं होता
सोचता हूं अमृत की कीमत क्या रह जाती
अगर आदम मरने से भयभीत नहीं होता-
किसी के खुद टूट जाने में गलती उतनी होती है
जितनी होती ही गुब्बारे की उसके फूट जाने में-
घट रहा है नूर शायद और बढ़ रही है गहराइयां,
छलक गई है आंखे अगर, बहाव सोच लीजिए-
जैसे तन्हाई में हुजूम ढूंढ रहा हूं
गहरे पानी में जुनून ढूंढ रहा हूं
सुना था किस्मत कभी तो बदलेगी
बड़ी सब्र से मैं सुकून ढूंढ रहा हूं-
वो पूछते है हमारा तुम से ऐसा क्या वास्ता था
हम तो समझे रूह से रूह तक का रास्ता था-
किस्मत छोड़ जाती है या निभाती है
रखो संग तुम पुरुषार्थ, धैर्य का ज़ोर
नर्म कागज़ भी बना था कोई सख्त पेड़ से
कागज़ की नाव का भी आता है इक दौर
खामोशी से निकल जाना तुम मसलों से
देखना, लोग रह जाएंगे मचाते हुए शोर
वक्त की फितरत है बदलते रहना तो
यकीनन कभी तो बोलेंगे तुम्हारे चकोर
तकदीर तुम्हारी लो तुम अपने हाथों में
खुद को कभी मत समझो तुम कमज़ोर
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पहले ख्वाहिश थी कि समझ पाए मुझे लोग
मगर अब मैं किसी का भी बुरा नही चाहता-