किसी की ताक़त किसी की कमज़ोरी बन जाती है,
जैसे हवा तेज़ हो तो चिराग़ बुझा जाती है।
हौसले पर जो सहारा बनती है,
कभी-कभी वही उम्मीद डुबा जाती है।-
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हम भी तो थोड़े रिश्ते नाते जानते हैं
अपने और सपने में अंतर पहचानते हैं
हकीकत हम से छिपाने का क्या फायदा
समंदर हैं, बादलों की हर बातें जानते हैं-
दीवाली में जगमगा रहा शहर
कह रहा था घर के आंगन को,
घर से निकला था ये दिया भी
रोशन करने अपने ही घर को-
शायद टूटे ख्वाबों को हकीकत से जोड़ा जा सकता है
कुछ नियम तोड़ने के लिए है, उन्हें मोड़ा जा सकता है
सिर्फ पाठशाला की पढ़ाई जिंदगी में काम कैसे आएगी
किताब के कम ज़रूरी पन्नों को छोड़ा जा सकता है-
किसी कोने में मेरे नाम का दिया अब भी जलता होगा
धूप तुझे मेरा छांव के पास जाना कुछ तो खल्ता होगा
कमबख्त, तुम्हारे दिल की दिवार कुछ कच्ची निकली
कोई नहीं, कोई तो होगा, जिसे वो भी चलता होगा-
कभी घर हुआ करता था, खंडहर लगता है अब
अनजाना सा महोल्ला था जो, घर लगता है अब
आगाज और अंत से हो गया हूं इतना अवगत
अपनी कहानी जानने से भी डर लगता है अब-
कहते है जरुरत बनना जरूरी नहीं होता
पैसा क्या होता अगर सीमित नहीं होता
सोचता हूं अमृत की कीमत क्या रह जाती
अगर आदम मरने से भयभीत नहीं होता-
किसी के खुद टूट जाने में गलती उतनी होती है
जितनी होती ही गुब्बारे की उसके फूट जाने में-
घट रहा है नूर शायद और बढ़ रही है गहराइयां,
छलक गई है आंखे अगर, बहाव सोच लीजिए-