दोनों के बीच गलतफहमी किसी और की वजह से नहीं थी
गलतफहमी से दोनों के बीच किसी और की जगह बन गयी।-
क्यों मेरे रब मुझे इतना सताते हो
मेरे अपनों से ही मेरी तोहीन करवाते हो
गलती तो बता जाया करो मेरी
क्यों हर बार मेरी ही हंसी छीन ले जाते हो-
मुझे क्या पता था की मेरा लिखा किसी को इतनी गहरी चोट देगा ,
मुझे क्या पता था की अल्फ़ाज़ मेरे किसी को जीने की वजह देगा ।
लिखा था मैंने अपने जज़्बात को अपने प्यार के लिये कागज़ पे ,
मुझे क्या पता था कोई उसे अपना समझ कर मुझसे प्यार कर बैठेगा ।
दर्द अपना लिखा था किसी और के लिये चाहत मेरी थी किसी और की खातिर ,
मुझे क्या पता था कोई उन चाहतों को खुद के हिस्से का दर्द समझ लेगा ।
प्यार लिखना आज गुनाह सा लगता है दर्द बयान करने से डर लगता है ,
मुझे क्या पता था किसी और के दिये दर्द को कोई अपना नाम दे जायेगा ।
मेरे हर अल्फ़ाज़ पे हक़ किसी और का है ये समझ ना पाया कोई ,
मुझे क्या पता था किसी और के हक़ पे कोई अपना हक़ जताना चाहेगा ।
नहीं जानना चाहती हूँ में की दिल में किसी के क्या है मेरे लिये ,
मुझे इतना पता है जिसे मैं चाहती हूँ उसके सिवा कोई मुझपे हक़ जता ना पायेगा ।-
आज एक शख्स से शरारत हो गयी अंजाने मे
फिर पूरा दिन ही गुजार दिया उसको मनाने मे
कह गये कुछ ऐसा जो कभी न कहना था हमें
सवाल-ए-गिरफ्त की रात गुजार दी पछताने में
जगह जगह क्या निशानियों की छाप छोड़ी है
एक उम्र ही गुजार दी उन यादों को मिटाने में
रज़ा-ए-खुदा ही मानी थी मैने जिन्दगी अपनी
माहौल में ढल कर माहिर हो गये गम छुपाने में
क्या खूब रची हरएक नयी शाजिश मेरे खिलाफ
अक्सर सदियां बीत जाती हादसों को भुलाने में
बिखरती 'रूचि' जितनी बार नये सीरे से संवरती
योगदान है उस शख्स का मुझे बेहतर बनाने में-
अगर कोई गलती करें न,
तो उसे माफ कर देना चाहिए
क्योंकि गलतियों से जुदा तू भी नहीं, मैं भी नहीं। हम दोनों इंसान हैं भगवान.. तो तू भी नहीं, मैं भी नहीं।
मैं तुझे तू मुझे इलजाम देते हैं,
मगर...
अपने अंदर झांकता तू भी नहीं, मैं भी नहीं ।
ये तो गलतफ़हमी ने दूरियां पैदा कर दी हम दोनों में
वरना फितरत का बुरा तू भी नहीं मैं भी नहीं।।-
उनको लगता है
रूठ कर हम उन्हें भूल जाने लगे है.... 2
आजकल वो इन गलतफहमी में आने लगे है
वो क्या जाने कि हम उनको और भी टूट कर चाहने लगे है...!-
मैंने चाहा तब की बात,
वर्ना तुमने कब की बात!
याद तुम्हे बस आज का दिन,
भूल गई तुम तब की बात!
छीन के मुझसे मेरा दिल,
पूछे वो ये कब की बात!
फ़िर पंचायत बैठेगी तो,
होगी बेमतलब की बात!
अपनापन भी खो बैठोगे,
छोड़ो भी तकरार की बात!
दो पल की यह जिंदगानी,
कर लेते हम प्यार की बात!
_राज सोनी-
तोहमतें दी हज़ार पर सुनी ना मेरी पुकार
बेपरवाह मोहब्बत पर ज़रा सा इख़्तियार
मैं उसका कभी भी हो नहीं पाया तो क्या
उसके इश़्क का नश़ा मेरे दिल में है बेश़ुमार
मेरी आवारगी, मेरी दीवानगी कहो ग़म नहीं
निकाल ही नहीं पाया दिल से उसका ख़ुमार
दुनिया भर की मुझे रुसवाई मिली सह लिया
करता रहूँगा तुझपर मैं अपनी ये जाँ निसार
अब सारी ग़लतियाँ मेरी हैं ये मान लिया मैंने
कर भी दे तू अब अपने इस प्यार का इज़हार
तेरी सभी श़िकायतें दिल से सुनेगा "आरिफ़"
कर तो सही कभी खुश़ी से तू सबका इक़रार
"कोरा काग़ज़" ही सही तेरा तलबगार हूँ मैं
मेरी नहीं तो मेरी कलम की सुन ले तू पुकार-
शिकायत हां भरपूर कर
आ जो गलतफहमी है दूं दूर कर
कभी प्यार कभी गुस्सा कभी नफरत
मोहतरमा पहले तू किसी एक को चूज कर-