कहाँ तक चले जाओगे - मेरी ग़मगीन नजरों से बचके - चन्द खिड़कियाँ खुली छोड़ देता हूँ मैं - अपनों की तलाश में।
-
12 SEP 2019 AT 15:08
6 SEP 2019 AT 9:10
वो आसमाँ है, उसे ग़ुरूर है अपनी ऊंचाइयों का,
एक मोहब्बत ही है जो उसे ज़मीन कर जाती है।-
27 NOV 2019 AT 20:46
बेख्वाब सी आँखों नें अक्सर,
अफ़सानें बेशुमार लिखे है।
ग़मगीन रातों में जागकर हमनें,
नज़रानें हज़ार लिखे हैं।।
-
21 MAR 2020 AT 19:40
कुछ लोग बस मस्ती-मस्ती में गम लिख जाते हैं और हम पढ़कर उनको 'अभि' गमगीन हो जाते हैं...
कुछ कलमकार बेवजह ही आशिक़ी के रंग हमारे जेहन में घोल जाते है और हम बेवजह रंगीन हो जाते हैं..-
8 JUN 2020 AT 1:01
हम बहता पानी हैं किसी तराजू में नहीं आएँगे
ग़म ज़्यादा हैं इन सादें काग़ज़ों पर नहीं आएँगे !!-
5 SEP 2019 AT 22:11
तेरी उदासी मुझे गमगीन कर जाती है।
गालों को मेरे नमकीन कर जाती है।-
20 OCT 2019 AT 0:34
ये न हे कि कोई खुशी हि न मिली इस जिन्दगी में।
हमें हि आदत हो गई तेरे ग़म को घोल देने की।-